पदक और रिबन के डिजाइन
इस पदक की शुरूआत 26 जनवरी 1960 को वी एस एम श्रेणी-प्प् के रूप में की गई। यह पदक असाधारण कोटि की विद्गिाषट सेवा को सम्मानित करने के लिए दिया जाता है। 27 जनवरी 1967 को इसका नाम अति विद्गिाषट सेवा मेडल कर दिया गया।
पदक: यह पदक गोलाकार होता है और इसका व्यास ३५ मिमी. है, यह सादी आड़ी पट्टी पर लगा होता है। इसकी फिटिंग स्टैंडर्ड होती है। यह पदक स्टैंडर्ड चांदी का बना हुआ है। इस पदक के सामने के हिस्से पर पांच नोकों वाला सितारा बना होता है और इसके पीछे की ओर राज्य चिह्न बना होता है तथा ऊपरी घेरे के पास इसका नाम खुदा होता है।
रिबन: इसका फीता सुनहरे रंग का होता है और इस पर गहरे नीले रंग की दो सीधी रेखाएं होती हैं जो इसे तीन बराबर हिस्सों में विभाजित करती हैं।
बार: यदि पदक विजेता को फिर से पदक पदान किया जाता है तो बहादुरी के इस कारनामे को सम्मानित करने के लिए पदक जिस फीते से लटका होता है, उसके साथ एक बार लगा दिया जाता है। यदि केवल फीता पहनना हो तो यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाता है, उतनी बार के लिए फीते के साथ सरकार द्वारा अनुमोदित पैटर्न के अनुसार बनी इसकी लघु प्रतिकृति लगाई जाती है।
कार्मिक पात्रनिम्नलिखित श्रेणियों के कार्मिक पदक प्राप्त करने के पात्र होंगे :-
पात्रता की शर्ते:यह पदक असाधारण कोटि की विद्गिाषट सेवा के लिए प्रदान किया जाता है।