पदक और रिबन के डिजाइन
इस पदक की शुरूआत 26 जनवरी 1950 को की गई, यह पदक युद्ध में शुगमन का मुकाबला करते हुए शौर्य के कारनामे को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है।
पदक: यह पदक गोलाकार होता है और स्टैंडर्ड चांदी का बना हुआ है, इसके सामने के हिस्से पर पांच नोकों वाला हेराल्डिक सितारा (स्टार) बना है जिसकी नोकें बाहरी घेरे को छू रही हैं। इस पदक का व्यास १.३७५ इंच है। सितारे का बीच का हिस्सा उभरा हुआ है जिस पर राज्य चिह्न (आदर्द्गा वाक्य सहित) बना हुआ है। इस सितारे पर पॉलिद्गा की हुई है और इसका बीच का हिस्सा सुनहरा है। पदक के पीछे की ओर हिंदी और अंग्रेजी में महा वीर चक्र खुदा हुआ है और हिंदी व अंग्रेजी के शब्दों के बीच कमल के दो फूल बने हुए हैं। यह फीते के साथ एक छोटे-से कुंडे से लटका होता है।
रिबन:इसका फीता आधा सफेद और आधा नारंगी रंग का होता है।
बार:यदि चक्र विजेता बहादुरी के ऐसे ही कारनामे का फिर से प्रदर्द्गान करता है, जिसके कारण वह चक्र प्राप्त करने का पात्र हो जाता है तो बहादुरी के इस कारनामे को सम्मानित करने के लिए चक्र जिस फीते से लटका होता है, उसके साथ एक बार लगा दिया जाता है। यदि केवल फीता पहनना हो तो यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाता है, उतनी बार के लिए फीते के साथ इसकी लघु प्रतिकृति लगाई जाती है।पात्र
कार्मिक निम्नलिखित श्रेणियों के कार्मिक महा वीर चक्र प्राप्त करने के पात्र होंगे :-
पात्रता की शर्ते: यह पदक जमीन पर, समुद्र में अथवा आकाद्गा में शुगमन का मुकाबला करते हुए शौर्य के कारनामे के लिए प्रदान किया जाता है। यह सम्मान मरणोपरांत भी प्रदान किया जा सकता है। 01.01.1996 से पदक विजेता को प्रति माह 2400/- रू० की राद्गिा प्रदान की जाती है और यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाएगा, हर बार उतनी ही राद्गिा प्रदान की जाएगी, जितनी पहली बार पदक प्राप्त करने पर प्रदान की गई थी।