पदक और रिबन के डिजाइन
इस पदक की शुरूआत 26 जनवरी 1960 को की गई, यह पदक वायु सेना कार्मिकों की असाधारण कर्त्तव्यपरायणता अथवा अदम्य साहस को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है। 1994 में इस पुरस्कार को वायु सेना मेडल (कर्त्तव्यपरायणता) और वायु सेना मेडल (द्गाौर्य) में विभाजित कर दिया गया।
पदक: इस पदक में पांच नोकों वाला सितारा बना होता है, यह स्टैंडर्ड चांदी का बना होता है और इसका व्यास 35 मिमी. होता है। यह पदक 3 मिमी. चौड़ी धातु की पट्टी से जुड़े छल्ले में लगा होता है, इस पट्टी पर अद्गाोक की पत्तियां बनी होती हैं। इसके सामने के हिस्से पर बीचों-बीच राज्य चिह्न बना होता है जिसके चारों ओर पत्तियों की माला बनी होती है। इसके पीछे की ओर हिमालयन बाज बना होता है और इसके नीचे पदक का नाम खुदा होता है।
रिबन: इसका फीता 32 मिमी. चौड़ा होता है, जिस पर केसरिया और हल्के स्लेटी रंग की 3-3 मिमी. चौड़ी रेखाएं बनी होती हैं, ये रेखाएं दायें से बाईं ओर बनी होती हैं।
बार: इस पदक का बार (जब पुनः प्रदान किया जाए) इसके फीते पर लगाया जाता है। जिन अवसरों पर केवल फीता पहना जाता है, उनमें सरकार द्वारा अनुमोदित पैटर्न के अनुसार बनी पदक की लघु प्रतिकृति फीते के बीच में लगाई जाती है।
कार्मिक पात्र निम्नलिखित श्रेणियों के कार्मिक यह पदक प्राप्त करने के पात्र होंगे :-
पात्रता की शर्ते:यह पदक असाधारण कर्तव्यपरायणता अथवा अदम्य साहस के ऐसे व्यक्तिगत कारनामे के लिए प्रदान किया जाता है जो वायु सेना के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हों। वा से मे (द्गाौर्य) अदम्य साहस के कारनामे के लिए और वा से मे (कर्तव्यपरायणता) असाधारण कर्तव्यनिषठा के व्यक्तिगत कारनामे को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है। किसी कार्मिक को यह पदक पुनः प्रदान किए जाने पर बार प्रदान किया जाता है। यह पदक मरणोपरांत भी प्रदान किया जाता है।
मौद्रिक भत्ता: 01.02.1999 से अदम्य साहस के कारनामे के लिए पदक प्रदान किए जाने पर प्रति माह 500/- रू० की राद्गिा प्रदान की जाती है।