पदक और रिबन के डिजाइन
इस पदक की शुरूआत 04 जनवरी 1952 को अद्गाोक चक्र श्रेणी-प्प्प् के रूप में की गई और 27 जनवरी 1967 को इसका नाम बदल कर शौर्य चक्र कर दिया गया। यह पदक शौर्य के कारनामे के लिए प्रदान किया जाता है, इसमें शुगमन का मुकाबला करना शामिल नहीं है।
पदक: यह पदक गोलाकार होता है और कांसे का बना हुआ है, इसका व्यास १.३७५ इंच है। इस पदक के सामने के हिस्से के बीच में अद्गाोक चक्र बना हुआ है जिसके चारों ओर कमल के फूलों की बेल बनी हुई है। इसके पीछे वाले हिस्से पर हिंदी और अंग्रेजी में 'द्गाौर्य चक्र' खुदा हुआ है और हिंदी व अंग्रेजी के शब्दों के बीच कमल के दो फूल बने हुए हैं।
रिबन: इसका फीता हरे रंग का होता है जिस पर तीन सीधी रेखाएं बनी होती हैं, ये रेखाएं फीते को चार बराबर हिस्सों में विभाजित करती हैं।
बार: यदि चक्र विजेता बहादुरी के ऐसे ही कारनामे का फिर से प्रदर्द्गान करता है, जिसके कारण वह चक्र प्राप्त करने का पात्र हो जाता है तो बहादुरी के इस कारनामे को सम्मानित करने के लिए चक्र जिस फीते से लटका होता है, उसके साथ एक बार लगा दिया जाता है। यदि केवल फीता पहनना हो तो यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाता है, उतनी बार के लिए फीते के साथ इसकी लघु प्रतिकृति लगाई जाती है।
कार्मिक पात्र निम्नलिखित श्रेणियों के कार्मिक चक्र प्राप्त करने के पात्र होंगे :-
पात्रता की शर्ते: यह पदक शौर्य के कारनामे को सम्मानित करने के लिए दिया जाता है, इसमें शुगमन का मुकाबला करना शामिल नहीं है। यह पदक मरणोपरांत भी प्रदान किया जाता है।
आर्थिक अनुदान :01.02.1999 से पदक विजेता को प्रति माह 1500/- रू० की राद्गिा प्रदान की जाती है और यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाएगा, हर बार उतनी ही राद्गिा प्रदान की जाएगी, जितनी पहली बार पदक प्राप्त करने पर प्रदान की गई थी।