इस पदक की शुरूआत 26 जून 1980 को की गई, यह पदक युद्ध/मुठभेड़/प्रतिकूल परिस्थितियों में असाधारण कोटि की विद्गिाषट सेवा को सम्मानित करने के लिए दिया जाता है।
पदक:यह पदक गोलाकार होता है और इसका व्यास ३५ मिमी. है। यह सादी आड़ी पट्टी पर लगा होता है और इसकी फिटिंग स्टैंडर्ड होती है। यह सुनहरे रंग का होता है। इस पदक के सामने के हिस्से पर राज्य चिह्न बना होता है और अंग्रेजी में 'उत्तम युद्ध सेवा मेडल' लिखा होता है। इसके पीछे की ओर पांच नोकों वाला सितारा बना होता है।
रिबन: इसका फीता सुनहरे रंग का होता है जिस पर लाल रंग की दो सीधी रेखाएं होती हैं, ये रेखाएं फीते को तीन बराबर हिस्सों में विभाजित करती हैं।
बार:यदि पदक विजेता को पुनः यह पदक प्रदान किया जाता है तो बहादुरी के इस कारनामे को सम्मानित करने के लिए पदक जिस फीते से पर लटका होता है, उसके साथ एक बार लगा दिया जाता है। यदि केवल फीता पहनना हो तो यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाता है, उतनी बार के लिए फीते के साथ सरकार द्वारा अनुमोदित पैटर्न के अनुसार बनी इसकी लघु प्रतिकृति लगाई जाती है।
कार्मिक पात्र निम्नलिखित श्रेणियों के कार्मिक पदक प्राप्त करने के पात्र होंगे :-
सेना, नौसेना और वायु सेना तथा प्रादेद्गिाक सेना यूनिटों, सहायक और रिजर्व सेना और कानूनी रूप से गठित अन्य सेनाओं के सभी रैंकों के अफसर और जवान (जब शामिल की जाएं)।
सद्गास्त्र सेनाओं की नर्सिंग सेवा के नर्सिंग अफसर और अन्य कार्मिक।
पात्रता की शर्ते:यह पदक युद्ध/मुठभेड़/प्रतिकूल परिस्थितियों में असाधारण कोटि की विद्गिाषट सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। यह पदक मरणोपरांत भी प्रदान किया जाता है।
वायु सेना पदक
वायु सेना पदक
पदक और रिबन के डिजाइन
इस पदक की शुरूआत 26 जनवरी 1960 को की गई, यह पदक वायु सेना कार्मिकों की असाधारण कर्त्तव्यपरायणता अथवा अदम्य साहस को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है। 1994 में इस पुरस्कार को वायु सेना मेडल (कर्त्तव्यपरायणता) और वायु सेना मेडल (द्गाौर्य) में विभाजित कर दिया गया।
पदक: इस पदक में पांच नोकों वाला सितारा बना होता है, यह स्टैंडर्ड चांदी का बना होता है और इसका व्यास 35 मिमी. होता है। यह पदक 3 मिमी. चौड़ी धातु की पट्टी से जुड़े छल्ले में लगा होता है, इस पट्टी पर अद्गाोक की पत्तियां बनी होती हैं। इसके सामने के हिस्से पर बीचों-बीच राज्य चिह्न बना होता है जिसके चारों ओर पत्तियों की माला बनी होती है। इसके पीछे की ओर हिमालयन बाज बना होता है और इसके नीचे पदक का नाम खुदा होता है।
रिबन: इसका फीता 32 मिमी. चौड़ा होता है, जिस पर केसरिया और हल्के स्लेटी रंग की 3-3 मिमी. चौड़ी रेखाएं बनी होती हैं, ये रेखाएं दायें से बाईं ओर बनी होती हैं।
बार: इस पदक का बार (जब पुनः प्रदान किया जाए) इसके फीते पर लगाया जाता है। जिन अवसरों पर केवल फीता पहना जाता है, उनमें सरकार द्वारा अनुमोदित पैटर्न के अनुसार बनी पदक की लघु प्रतिकृति फीते के बीच में लगाई जाती है।
कार्मिक पात्र निम्नलिखित श्रेणियों के कार्मिक यह पदक प्राप्त करने के पात्र होंगे :-
नियमित वायु सेना के अफसर और वायु सैनिक तथा रिजर्व और सहायक वायु सेना अधिनियम, 1952 की धारा 25 के तहत बुलाई गई सहायक वायु सेना, वायु रक्षा रिज़र्व और नियमित रिज़र्व के अफसर और वायु सैनिक।
विमानन कार्पोरेशन में पायलटों के रूप में सेवारत सैन्य अधिकारियों को भी इस पदक के पुरस्कार के लिए पात्र होंगे।
पात्रता की शर्ते:यह पदक असाधारण कर्तव्यपरायणता अथवा अदम्य साहस के ऐसे व्यक्तिगत कारनामे के लिए प्रदान किया जाता है जो वायु सेना के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हों। वा से मे (द्गाौर्य) अदम्य साहस के कारनामे के लिए और वा से मे (कर्तव्यपरायणता) असाधारण कर्तव्यनिषठा के व्यक्तिगत कारनामे को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है। किसी कार्मिक को यह पदक पुनः प्रदान किए जाने पर बार प्रदान किया जाता है। यह पदक मरणोपरांत भी प्रदान किया जाता है।
मौद्रिक भत्ता: 01.02.1999 से अदम्य साहस के कारनामे के लिए पदक प्रदान किए जाने पर प्रति माह 500/- रू० की राद्गिा प्रदान की जाती है।
विशिष्ट सेवा पदक
विशिष्ट सेवा पदक
पदक और रिबन के डिजाइन
इस पदक की शुरूआत 26जनवरी 1960 को वी एस एम श्रेणी-प्प्प् के रूप में की गई, यह उच्च कोटि की विद्गिाषट सेवा को सम्मानित करने के लिए दिया जाता है। 27 जनवरी 1967 को इसका नाम विद्गिाषट सेवा मेडल कर दिया गया।
पदक: यह पदक गोलाकार होता है और इसका व्यास ३५ मिमी. है, यह सादी आड़ी पट्टी पर लगा होता है इसकी फिटिंग स्टैंडर्ड होती है। यह पदक कांस्य का बना हुआ है। इस पदक के सामने के हिस्से पर पांच नोकों वाला सितारा बना होता है और इसके पीछे की ओर राज्य चिह्न बना होता है तथा ऊपरी घेरे के पास इसका नाम खुदा होता है।
रिबन: इसका फीता सुनहरे रंग का होता है और इस पर गहरे नीले रंग की तीन सीधी रेखाएं होती हैं जो इसे चार बराबर हिस्सों में विभाजित करती हैं।
बार: यदि पदक विजेता को फिर से पदक प्रदान किया जाता है तो बहादुरी के इस कारनामे को सम्मानित करने के लिए पदक जिस फीते से लटका होता है, उसके साथ एक बार लगा दिया जाता है।
कार्मिक पात्रनिम्नलिखित श्रेणियों के कार्मिक पदक प्राप्त करने के पात्र होंगे :-
(a) सेना, नौसेना और वायु सेना तथा प्रादेद्गिाक सेना यूनिटों, सहायक और रिजर्व सेना और कानूनी रूप से गठित अन्य सेनाओं के सभी रैंकों के अफसर और जवान (जब शामिल की जाएं)। (b) सद्गास्त्र सेनाओं की नर्सिंग सेवा के नर्सिंग अफसर और अन्य कार्मिक।
पात्रता की शर्ते: यह पदक उच्च कोटि की विद्गिाषट सेवा के लिए प्रदान किया जाता है।
अति विशिष्ट सेवा पदक
अति विशिष्ट सेवा पदक
पदक और रिबन के डिजाइन
इस पदक की शुरूआत 26 जनवरी 1960 को वी एस एम श्रेणी-प्प् के रूप में की गई। यह पदक असाधारण कोटि की विद्गिाषट सेवा को सम्मानित करने के लिए दिया जाता है। 27 जनवरी 1967 को इसका नाम अति विद्गिाषट सेवा मेडल कर दिया गया।
पदक: यह पदक गोलाकार होता है और इसका व्यास ३५ मिमी. है, यह सादी आड़ी पट्टी पर लगा होता है। इसकी फिटिंग स्टैंडर्ड होती है। यह पदक स्टैंडर्ड चांदी का बना हुआ है। इस पदक के सामने के हिस्से पर पांच नोकों वाला सितारा बना होता है और इसके पीछे की ओर राज्य चिह्न बना होता है तथा ऊपरी घेरे के पास इसका नाम खुदा होता है।
रिबन: इसका फीता सुनहरे रंग का होता है और इस पर गहरे नीले रंग की दो सीधी रेखाएं होती हैं जो इसे तीन बराबर हिस्सों में विभाजित करती हैं।
बार: यदि पदक विजेता को फिर से पदक पदान किया जाता है तो बहादुरी के इस कारनामे को सम्मानित करने के लिए पदक जिस फीते से लटका होता है, उसके साथ एक बार लगा दिया जाता है। यदि केवल फीता पहनना हो तो यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाता है, उतनी बार के लिए फीते के साथ सरकार द्वारा अनुमोदित पैटर्न के अनुसार बनी इसकी लघु प्रतिकृति लगाई जाती है।
कार्मिक पात्रनिम्नलिखित श्रेणियों के कार्मिक पदक प्राप्त करने के पात्र होंगे :-
सेना, नौसेना और वायु सेना तथा प्रादेद्गिाक सेना यूनिटों, सहायक और रिजर्व सेना और कानूनी रूप से गठित अन्य सेनाओं के सभी रैंकों के अफसर और जवान (जब शामिल की जाएं)।
सद्गास्त्र सेनाओं की नर्सिंग सेवा के नर्सिंग अफसर और अन्य कार्मिक।
पात्रता की शर्ते:यह पदक असाधारण कोटि की विद्गिाषट सेवा के लिए प्रदान किया जाता है।
परम विशिष्ट सेवा पदक
परम विशिष्ट सेवा पदक
पदक और रिबन के डिजाइन
इस पदक की शुरूआत 26 जनवरी 1960 को वी एस एम श्रेणी-प् के रूप में की गई, यह पदक असाधारण कोटि की विद्गिाषट सेवा को सम्मानित करने के लिए दिया जाता है। 27 जनवरी 1967 को इसका नाम परम विद्गिाषट सेवा मेडल कर दिया गया।
पदक: यह पदक गोलाकार होता है और इसका व्यास ३५ मिमी. है, यह सादी आड़ी पट्टी पर लगा होता है और इसकी फिटिंग स्टैंडर्ड होती है। यह सुनहरे रंग का होता है। इस पदक के सामने के हिस्से पर पांच नोकों वाला सितारा बना होता है और इसके पीछे की ओर राज्य चिह्न बना होता है तथा ऊपरी घेरे के पास इसका नाम खुदा होता है।
रिबन:इसका फीता सुनहरे रंग का होता है और बीच में गहरे नीले रंग की सीधी रेखा होती है जो इसे दो बराबर हिस्सों में विभाजित करती है।
बार:यदि पदक विजेता को पुनः पदक पदान किया जाता है तो बहादुरी के इस कारनामे को सम्मानित करने के लिए पदक जिस फीते से लटका होता है, उसके साथ एक बार लगा दिया जाता है। यदि केवल फीता पहनना हो तो यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाता है, उतनी बार के लिए फीते के साथ सरकार द्वारा अनुमोदित पैटर्न के अनुसार बनी इसकी लघु प्रतिकृति लगाई जाती है।
कार्मिक पात्र निम्नलिखित श्रेणियों के कार्मिक पदक प्राप्त करने के पात्र होंगे :-
सेना, नौसेना और वायु सेना तथा प्रादेद्गिाक सेना यूनिटों, सहायक और रिजर्व सेना और कानूनी रूप से गठित अन्य सेनाओं के सभी रैंकों के अफसर और जवान (जब शामिल की जाएं)।
सद्गास्त्र सेनाओं की नर्सिंग सेवा के नर्सिंग अफसर और अन्य कार्मिक।
पात्रता की शर्ते: यह पदक असाधारण कोटि की विद्गिाषट सेवा के लिए प्रदान किया जाता है।
युद्ध सेवा पदक
युद्ध सेवा पदक
पदक और रिबन के डिजाइन
इस पदक की शुरूआत 26 जून 1980 को की गई, यह पदक युद्ध/मुठभेड़/प्रतिकूल परिस्थितियों में उच्च कोटि की विद्गिाषट सेवा को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है।
पदक: यह पदक गोलाकार होता है और इसका व्यास ३५ मिमी. है। यह सादी आड़ी पट्टी पर लगा होता है और इसकी फिटिंग स्टैंडर्ड होती है। यह सुनहरे रंग का होता है। इस पदक के सामने के हिस्से पर राज्य चिह्न बना होता है और अंग्रेजी में 'युद्ध सेवा मेडल' लिखा होता है। इसके पीछे की ओर पांच नोकों वाला सितारा बना होता है।
रिबन: इसका फीता सुनहरे रंग का होता है जिस पर लाल रंग की तीन सीधी रेखाएं होती हैं जो इसे चार बराबर हिस्सों में विभाजित करती हैं।
बार: यदि पदक विजेता को फिर से पदक पदान किया जाता है तो बहादुरी के इस कारनामे को सम्मानित करने के लिए पदक जिस फीते से लटका होता है, उसके साथ एक बार लगा दिया जाता है। यदि केवल फीता पहनना हो तो यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाता है, उतनी बार के लिए फीते के साथ सरकार द्वारा अनुमोदित पैटर्न के अनुसार बनी इसकी लघु प्रतिकृति लगाई जाती है।
कार्मिक पात्र निम्नलिखित श्रेणियों के कार्मिक पदक प्राप्त करने के पात्र होंगे :-
सेना, नौसेना और वायु सेना तथा प्रादेद्गिाक सेना यूनिटों, सहायक और रिजर्व सेना और कानूनी रूप से गठित अन्य सेनाओं के सभी रैंकों के अफसर और जवान (जब शामिल की जाएं)।
सद्गास्त्र सेनाओं की नर्सिंग सेवा के नर्सिंग अफसर और अन्य कार्मिक।
पात्रता की शर्तें।यह पदक युद्ध/मुठभेड़/प्रतिकूल परिस्थितियों में असाधारण विद्गिाषट सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। यह पदक मरणोपरांत भी प्रदान किया जाता है।
सर्वोत्तम युद्ध सेवा पदक
सर्वोत्तम युद्ध सेवा पदक
पदक और रिबन के डिजाइन
इस पदक की शुरूआत 26 जून 1980 को की गई, यह पदक युद्ध/मुठभेड़/प्रतिकूल परिस्थितियों में असाधारण कोटि की विद्गिाषट सेवा को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है।
पदक:यह पदक गोलाकार होता है और इसका व्यास ३५ मिमी. है। यह सादी आड़ी पट्टी पर लगा होता है और इसकी फिटिंग स्टैंडर्ड होती है। यह सुनहरे रंग का होता है। इस पदक के सामने के हिस्से पर राज्य चिह्न बना होता है और अंग्रेजी में 'सर्वोत्तम युद्ध सेवा मेडल' लिखा होता है। इसके पीछे की ओर पांच नोकों वाला सितारा बना होता है।
रिबन: इसका फीता सुनहरे रंग का होता है जिसके बीचों-बीच लाल रंग की सीधी रेखा होती है जो इसे दो बराबर हिस्सों में विभाजित करती है।
बार: यदि पदक विजेता बहादुरी के ऐसे ही कारनामे का फिर से प्रदर्द्गान करता है, जिसके कारण वह पदक प्राप्त करने का पात्र हो जाता है तो बहादुरी के इस कारनामे को सम्मानित करने के लिए पदक जिस फीते से लटका होता है, उसके साथ एक बार लगा दिया जाता है। यदि केवल फीता पहनना हो तो यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाता है, उतनी बार के लिए फीते के साथ सरकार द्वारा अनुमोदित पैटर्न पर बनी इसकी लघु प्रतिकृति लगाई जाती है।
कार्मिक पात्रनिम्नलिखित श्रेणियों के कार्मिक चक्र प्राप्त करने के पात्र होंगे :-
सेना, नौसेना और वायु सेना तथा प्रादेद्गिाक सेना यूनिटों, सहायक और रिजर्व सेना और कानूनी रूप से गठित अन्य सेनाओं के सभी रैंकों के अफसर और जवान (जब शामिल की जाएं)।
सद्गास्त्र सेनाओं की नर्सिंग सेवा के नर्सिंग अफसर और अन्य कार्मिक।
पात्रता की शर्ते: यह पदक युद्ध/मुठभेड़/प्रतिकूल परिस्थितियों में असाधारण विद्गिाषट सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। यह पदक मरणोपरांत भी प्रदान किया जाता है।
वीर चक्र
वीर चक्र
पदक की डिजाइन
इस पदक की शुरूआत 26 जनवरी 1950 को की गई, यह पदक शुगमन का मुकाबला करते हुए शौर्य के कारनामे को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है।
पदक: यह पदक गोलाकार होता है और स्टैंडर्ड चांदी का बना हुआ है, इसके सामने के हिस्से पर पांच नोकों वाला हेराल्डिक सितारा (स्टार) बना है जिसकी नोकें बाहरी घेरे को छू रही हैं। सितारे का बीच का हिस्सा उभरा हुआ है जिस पर राज्य चिह्न (आदर्द्गा वाक्य सहित) बना हुआ है। इस सितारे पर पॉलिद्गा की हुई है और इसका बीच का हिस्सा सुनहरा है। पदक के पीछे वाले हिस्से पर हिंदी और अंग्रेजी में महावीर चक्र खुदा हुआ है और हिंदी व अंग्रेजी के शब्दों के बीच कमल के दो फूल बने हुए हैं। यह फीते के साथ एक छोटे-से कुंडे से लटका होता है।
रिबन: इसका फीता आधा नीला और आधा नारंगी रंग का होता है।
बार: यदि चक्र विजेता बहादुरी के ऐसे ही कारनामे का फिर से प्रदर्द्गान करता है, जिसके कारण वह चक्र प्राप्त करने का पात्र हो जाता है तो बहादुरी के इस कारनामे को सम्मानित करने के लिए चक्र जिस फीते से लटका होता है, उसके साथ एक बार लगा दिया जाता है। यदि केवल फीता पहनना हो तो यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाता है, उतनी बार के लिए फीते के साथ इसकी लघु प्रतिकृति लगाई जाती है।
कार्मिक पात्रनिम्नलिखित श्रेणियों के कार्मिक चक्र प्राप्त करने के पात्र होंगे :-
सेना, नौसेना और वायु सेना, किसी भी रिजर्व सेना, प्रादेद्गिाक सेना, नागरिक सेना (मिलिद्गिाया) और कानूनी रूप से गठित अन्य सद्गास्त्र सेना के सभी रैंकों के अफसर और पुरूषा व महिला सैनिक।
नर्सिंग सेवा और अस्पताल व नर्सिंग से जुड़ी अन्य सेवाओं के किसी भी लिंग के मेट्रन, सिस्टर और नर्स और स्टाफ तथा सिविलियन, जो उपर्युक्त किसी भी सेवा के आदेद्गा, निदेद्गा या पर्यवेक्षण के तहत नियमित या अस्थायी रूप से कार्य कर रहे हैं।
पात्रता की शर्ते: यह पदक जमीन पर, समुद्र में अथवा आकाद्गा में शुगमन का मुकाबला करते हुए शौर्य के कारनामे को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है। यह सम्मान मरणोपरांत भी प्रदान किया जा सकता है। 01.02.1999. से पदक विजेता को प्रति माह 1700/- रू० की राद्गिा प्रदान की जाती है और यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाएगा, हर बार उतनी ही राद्गिा प्रदान की जाएगी, जितनी पहली बार पदक प्राप्त करने पर प्रदान की गई थी।
शौर्य चक्र
शौर्य चक्र
पदक और रिबन के डिजाइन
इस पदक की शुरूआत 04 जनवरी 1952 को अद्गाोक चक्र श्रेणी-प्प्प् के रूप में की गई और 27 जनवरी 1967 को इसका नाम बदल कर शौर्य चक्र कर दिया गया। यह पदक शौर्य के कारनामे के लिए प्रदान किया जाता है, इसमें शुगमन का मुकाबला करना शामिल नहीं है।
पदक: यह पदक गोलाकार होता है और कांसे का बना हुआ है, इसका व्यास १.३७५ इंच है। इस पदक के सामने के हिस्से के बीच में अद्गाोक चक्र बना हुआ है जिसके चारों ओर कमल के फूलों की बेल बनी हुई है। इसके पीछे वाले हिस्से पर हिंदी और अंग्रेजी में 'द्गाौर्य चक्र' खुदा हुआ है और हिंदी व अंग्रेजी के शब्दों के बीच कमल के दो फूल बने हुए हैं।
रिबन: इसका फीता हरे रंग का होता है जिस पर तीन सीधी रेखाएं बनी होती हैं, ये रेखाएं फीते को चार बराबर हिस्सों में विभाजित करती हैं।
बार: यदि चक्र विजेता बहादुरी के ऐसे ही कारनामे का फिर से प्रदर्द्गान करता है, जिसके कारण वह चक्र प्राप्त करने का पात्र हो जाता है तो बहादुरी के इस कारनामे को सम्मानित करने के लिए चक्र जिस फीते से लटका होता है, उसके साथ एक बार लगा दिया जाता है। यदि केवल फीता पहनना हो तो यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाता है, उतनी बार के लिए फीते के साथ इसकी लघु प्रतिकृति लगाई जाती है।
कार्मिक पात्र निम्नलिखित श्रेणियों के कार्मिक चक्र प्राप्त करने के पात्र होंगे :-
सेना, नौसेना और वायु सेना, किसी भी रिजर्व सेना, प्रादेद्गिाक सेना, नागरिक सेना (मिलिद्गिाया) और कानूनी रूप से गठित अन्य सद्गास्त्र सेना के सभी रैंकों के अफसर और पुरूषा व महिला सैनिक।
सद्गास्त्र सेनाओं की नर्सिंग सेवाओं के सदस्य
समाज के प्रत्येक क्षेत्र के सभी लिंगों के सिविलियन नागरिक और पुलिस फोर्स, केन्द्रीय पैरा-मिलिट्री फोर्स और रेलवे सुरक्षा फोर्स के कार्मिक।
पात्रता की शर्ते: यह पदक शौर्य के कारनामे को सम्मानित करने के लिए दिया जाता है, इसमें शुगमन का मुकाबला करना शामिल नहीं है। यह पदक मरणोपरांत भी प्रदान किया जाता है।
आर्थिक अनुदान :01.02.1999 से पदक विजेता को प्रति माह 1500/- रू० की राद्गिा प्रदान की जाती है और यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाएगा, हर बार उतनी ही राद्गिा प्रदान की जाएगी, जितनी पहली बार पदक प्राप्त करने पर प्रदान की गई थी।
कीर्ति चक्र
कीर्ति चक्र
पदक और रिबन के डिजाइन
कीर्ति चक्र की शुरूआत शौर्य के कारनामे को सम्मानित करने के लिए 04 जनवरी 1952 को अद्गाोक चक्र श्रेणी-प्प् के रूप में की गई। 27 जनवरी 1967 को इसका नाम बदल कर कीर्ति चक्र कर दिया गया।
पदक: यह पदक गोलाकार होता है और स्टैंडर्ड चांदी का बना हुआ है, इसका व्यास १.३७५ इंच है। इस पदक के सामने के हिस्से के बीच में अद्गाोक चक्र बना हुआ है जिसके चारों ओर कमल के फूलों की बेल बनी हुई है। इसके पीछे वाले हिस्से पर हिंदी और अंग्रेजी में 'कीर्ति चक्र' खुदा हुआ है और हिंदी व अंग्रेजी के शब्दों के बीच कमल के दो फूल बने हुए हैं।
रिबन: इसका फीता हरे रंग का होता है जिस पर नारंगी रंग की दो सीधी रेखाएं बनी होती हैं, ये रेखाएं फीते को तीन बराबर हिस्सों में विभाजित करती हैं।
बार: यदि चक्र विजेता बहादुरी के ऐसे ही कारनामे का फिर से प्रदर्द्गान करता है, जिसके कारण वह चक्र प्राप्त करने का पात्र हो जाता है तो बहादुरी के इस कारनामे को सम्मानित करने के लिए चक्र जिस फीते से लटका होता है, उसके साथ एक बार लगा दिया जाता है। यदि केवल फीता पहनना हो तो यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाता है, उतनी बार के लिए फीते के साथ इसकी लघु प्रतिकृति लगाई जाती है।
कार्मिक पात्रनिम्नलिखित श्रेणियों के कार्मिक कीर्ति चक्र प्राप्त करने के पात्र होंगे :-
सेना, नौसेना और वायु सेना, किसी भी रिजर्व सेना, प्रादेद्गिाक सेना, नागरिक सेना (मिलिद्गिाया) और कानूनी रूप से गठित अन्य सद्गास्त्र सेना के सभी रैंकों के अफसर और पुरूषा व महिला सैनिक।
सद्गास्त्र सेनाओं की नर्सिंग सेवाओं के सदस्य
समाज के प्रत्येक क्षेत्र के सभी लिंगों के सिविलियन नागरिक और पुलिस फोर्स, केन्द्रीय पैरा-मिलिट्री फोर्स और रेलवे सुरक्षा फोर्स के कार्मिक।
पात्रता की शर्ते: यह पदक असाधारण शौर्य के कारनामे के लिए प्रदान किया जाता है, इसमें शुगमन का मुकाबला करना शामिल नहीं है। यह पदक मरणोपरांत भी प्रदान किया जाता है। 01.02.1999. से पदक विजेता को प्रति माह 2100/- रू० की राद्गिा प्रदान की जाती है और यह पदक जितनी बार प्रदान किया जाएगा, हर बार उतनी ही राद्गिा प्रदान की जाएगी, जितनी पहली बार पदक प्राप्त करने पर प्रदान की गई थी।