1950 के दशक से लेकर अब तक भारतीय वायु सेना का बहुत ही विस्तार किया गया है जिसमें कमान और नियंत्रण संरचना को पुनर्संगठित किया गया है। 1947 के नं. 1 ऑपरेशनल ग्रुप को कलकत्ता में 1958 में फिर से चालू किया गया तथा देश के पूर्वी तथा मध्य अंचल में भारतीय वायु सेना के हवाई ऑपरेशनों को संगठित तथा संचालित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। 1962 में चीन के आक्रमण के उपरांत इसमें परिवर्तन की पुनः आवश्कता महसूस हुई और इस ऑपरेशनल ग्रुप की जिम्मेदारी के क्षेत्र को दो अलग-अलग कमानों में बांट दिया गया। तद्नुसार भारत-नेपाल सीमा पर सतत निगरानी रखने के उद्देश्य से कलकत्ता के ‘रानी-कुटीर’ में मार्च 1962 में मध्य वायु कमान (मवाक) की स्थापना की गई। किन्तु मध्य वायु कमान की जिम्मेदारी के क्षेत्र को मद्देनजर रखते हुए फरवरी 1966 में मुख्यालय मध्य वायु कमान को बमरौली इलाहाबाद में स्थानांतरित कर दिया गया। वर्तमान समय में वायु कमान का क्षेत्रफल उत्तर में स्थित हिमाच्छादित पर्वतों से लेकर गंगा के मैदान तथा मध्य भारत के ऊँचे पठारों तक फैला हुआ है।
मध्य वायु कमान अपने घोष वाक्य ‘दमनीयाः आत्मशत्रवः’ अर्थात ‘शत्रु का दमन करो’ को आत्मसात करते हुए युद्ध एवं शांति दोनों ही परिस्थितियों में राष्ट्र की सेवा में समर्पित होने का अपना अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। भारतीय वायु सेना की प्रमुख कमानों में से एक मध्य वायु कमान समय के साथ काफी विकसित हुई है और एयरबार्न प्लेटफार्मों की प्रयोज्यता में पैराडाइम शिफ्ट की साक्षी रही है। विंटेज तथा लेगसी बेड़ों का स्थान अधिक शक्तिशाली और घातक प्लेटफार्म ने ले लिया है। वर्सेटाइल कैनबरा, स्पिटफायर, लिबरेटर, जीनेट, मिग-25 पैकेट, एएन-32 और एम आई-4 जैसे विमानों के स्थान पर आधुनिक विमानों जैसे-मिराज-2000, एस यू-30 एम के आई, जगुआर, हाई परफार्मेंस एयरबार्न वार्निंग एण्ड कंट्रोल सिस्टम, आई एल-76, एम आई-17 तथा एएलएच ने स्थान बना लिया है।
मध्य वायु कमान के पास अपनी उपलब्धियों का गौरवपूर्ण इतिहास है तथा विगत वर्षों में इसने राष्ट्र के आकाश की रक्षा करने में महत्वपूर्ण कीर्तिमान स्थापित किया है। कमान मुख्यालय सभी प्रकार की संक्रियात्मक गतिविधियों का केन्द्र है तथा स्वतंत्रता प्राप्ति से ही इसके स्क्वाड्रन सभी प्रमुख ऑपरेशनों में अपनी सहभागिता दर्ज करते आये हैं। मध्य वायु कमान ने हर प्रकार की चुनौतियों का सामना किया है तथा युद्ध एवं शांति दोनों ही परिस्थितियों में इसने राष्ट्र के गौरव को बढ़ाया है।
परिचय
पूर्वी तथा मध्य क्षेत्रों में हवाई ऑपरेशनों के लिए 1958 में नं. 1 प्रचालन समूह का पूनरूद्धार किया गया। मध्य वायु कमान की स्थापना मार्च 1962 में रानी कुटीर, कोलकाता में की गई तदुपरांत इसे फरवरी 1966 में बमरौली प्रयागराज स्थानांततित किया गया।
भारत-चीन युद्ध 1962
भारत-चीन युद्ध 1962 के दौरान मध्य वायु कमान के परिवहन वायुयान तथा हेलीकॉप्टर अत्यंत ही विषम मौसम परिस्थितियों में हमारी सेना का हौसला बढ़ाते हुए देखे गये। उन्होंने टोह, पारिभारिकी सहायता तथा हताहतों को बाहर निकालने और अव्यवस्थित एवं असर्वेक्षित पूर्वी हिमालय क्षेत्र में संचार मिशन के द्वारा सहायता प्रदान की। ऑपरेशनों के दौरान दुश्मन की सीमा के भीतर जाकर शुरू में ही महत्वपूर्ण सूचनाएं एकत्र करने में 106 कैनबरा स्क्वाड्रन ने कई टोही मिशनों को अंजाम दिया । स्क्वाड्रन के तत्कालीन फ्लाइट कमांडर स्क्वाड्रन लीडर जे एम नाथ ने अक्साई चीन तथा तिब्बत क्षेत्र में दुश्मन की पहाड़ी सीमा के भीतर जोखिम भरे कई मिशनों को अंजाम दिया। उनके साहसिक टोही मिशनों के लिए उन्हें 1962 में भारतीय वायु सेना का पहला महावीर चक्र प्रदान किया गया।
भारत-पाकिस्तान युद्ध 1965
1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान मध्य वायु कमान के कैनबरा वायुयान स्क्वाड्रन बड़े ही विध्वंसक तरीके से गति में आये। इन्होंने पश्चिम क्षेत्र में पाकिस्तान के विरुद्ध बड़ी संख्या में टोही, बॉम्बिंग तथा क्लोज एयर सपोर्ट मिशनों को पूर्ण किया। चकलाला, मुरारीपुर, मुल्तान, पेशावर तथा सरगोधा में पाकिस्तानी एयरबेसों पर रात और दिन में अत्यंत ही बारीकी से हवाई हमला किया गया। 13 तथा 14 सितम्बर की रात को नं. 5 स्क्वाड्रन के स्क्वाड्रन लीडर चरणजीत सिंह तथा फ्लाइट लेफ्टिनेंट मंगत सिंह ने दुश्मन की सीमा के काफी भीतर घुसकर पेशावर में एक महत्वपूर्ण एयरबेस में बहुत ही सटीक तरीके से हवाई हमला किया। इस युद्ध के लिए मध्य वायु कमान की कैनबरा स्क्वाड्रन के सदस्यों को एम वी सी के फर्स्ट बार के साथ तीन महावीर चक्र से अलंकृत किया गया।
भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971
पाकिस्तान के विरुद्ध 1971 में भारतीय सेनाओं की निर्णायक जीत तथा पूर्वी पाकिस्तान की स्वतंत्रता के साथ एक नये स्वतंत्र राष्ट्र बांगलादेश का अभ्युदय वास्तव में मध्य वायु कमान के इतिहास का एक गौरवपूर्ण अध्याय है। 03 दिसम्बर 1971 को 1747 बजे पाकिस्तानी एयरफोर्स ने भारतीय वायु सेना के कई अग्रणी बेसों पर लगातार आक्रमण शुरु कर दिया। मध्य वायु कमान के कैनबरा वायुयान ने 03 दिसम्बर की मध्य रात्रि के पहले ही बदले की तीव्र कार्रवाई करके पाकिस्तानी एयरबेसों पर हमला कर उन्हें नेस्तनाबूद कर दिया। नं.35 स्क्वाड्रन के सात कैनबरा वायुयानों ने एक बड़े आक्रमण में पाकिस्तान के लगभग 60% तेल भंडारण को बरबाद करके द्रिघ रोड में भंडारण क्षेत्र तथा करांची में तेल भंडारण टैंकों को बुरी तरह प्रभावित किया। इस कमान के ए एन-12, डकोटा तथा पॉकेट वाले परिवहन वायुयानों के एक बेड़े ने 11 तथा 12 दिसम्बर 1971 को पूर्वी पाकिस्तान के तंगेल में ऐतिहासिक पैरा बटालियन ड्रॉप को अंजाम दिया। इस बटालियन ने पाकिस्तान के अंदर 130 किलोमीटर घुसकर दुश्मन को आश्चर्यचकित कर दिया तथा पाकिस्तानी सेनाओं को समर्पण के लिए बाध्य कर दिया। मध्य वायु कमान के कार्मिकों को विभिन्न वीरता पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
ऑपरेशन पवन
श्रीलंका में 1987-89 में ‘ऑपरेशन पवन’ के दौरान मध्य वायु कमान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मिराज-2000 को भारतीय संकल्प को प्रदर्शित करने के लिए उड़ाया गया जबकि मध्य वायु कमान के आई एल-76, ए एन-32 तथा एम आई-17 वायुयानों को श्रीलंका में नागरिकों तथा भारतीय सेनाओं की टोही, पारिभारिकी सहायता और हताहतों को बाहर ले जाने के लिए तथा संचार मिशन के लिए लगाया गया।
ऑपरेशन कैक्टस
भारत के पश्चिम तट से लगे हुए भारतीय समुद्री द्वीपसमूह में एक द्वीपीय देश मालदीव पर 23 नवम्बर 1988 को समुद्री लुटेरों ने आक्रमण कर दिया। सेना के पदस्थ अध्यक्ष की अपील पर भारत सरकार के सहायता पहुंचाने के निर्णय से भारतीय वायु सेना ने ‘ऑपरेशन कैक्टस’ को अंजाम दिया। ठीक उसी रात को 44 स्क्वाड्रन के दो आई एल-76 वायुयानों में भारतीय सेना की 50वीं पैराशूट रेजिमेंट की एक बटालियन को मालदीव के लिए एयर लिफ्ट किया गया। वायुयानों ने 2000 किमी से भी अधिक लगातार उड़ान भरी तथा बिना किसी एयरफील्ड सहायता के ही हुलूल एयरपोर्ट के एक अंधकारमय रनवे पर 0030 बजे लैण्ड किया। इस स्क्वाड्रन द्वारा उस समय आगरा और हुलूल के मध्य पांच और उड़ाने भरी गईं। अपनी तैनाती के घण्टे भर में ही भारतीय वायु सेना ने 4 नवम्बर 1988 को 0230 बजे तक एक एयरफील्ड को सुरक्षित बनाया तथा अपने मिशन को पूरा किया और सरकारी नियम को पुनःस्थापित किया। सरकार के समर्थन में शक्ति प्रदर्शन के लिए मध्य वायु कमान के मिराज-2000 ने फैले हुए द्वीप समूह के निचली सतह से भी उड़ान भरी। भारतीय वायु सेना की सामरिक लिफ्ट क्षमता से भारतीय वायु सेना की तीव्र जवाबी कार्रवाई सम्भव हो सकी तथा किराये के सैनिकों द्वारा आक्रमण तथा रक्तहीन मुठभेड़ जल्द ही समाप्त हो गई।
ऑपरेशन सफेद सागर
1999 में ‘ऑपरेशन सफेद सागर’, कारगिल की लड़ाई, इस बात को साबित करती है कि सक्षमता तथा व्यावसायिक कुशलता के मामले में भारतीय वायु सेना पाकिस्तानी वायु सेना से श्रेष्ठ है। हवाई रक्षा तथा भू-आक्रमण मिशनों को अंजाम देने में मध्य वायु कमान के मिराज 2000 वायुयानों की अग्रणी भूमिका थी। मंटो ढालों में दुश्मन के आपूर्ति भंडार तथा टाईगर हिल के सामरिक पोस्टों पर घातक सटीकता के साथ लक्ष्यों पर लेजर गाइडेड बमों जैसे- प्रीसीजन आयुधो के उपयोग ने युद्ध का परिदृश्य ही बदल दिया तथा युद्ध का अंत निर्णायक रहा। मध्य वायु कमान की मिग-25 तथा कैनबरा द्वारा उड़ाये गये कई फोटो टोही मिशनों ने सभी लक्ष्यों की महत्वपूर्ण सूचना प्रदान की। 21 मई 1999 को फोटो टोही मिशन के दौरान मूल ऑपरेशन शुरु होने के पहले ही 106 सामरिक टोही स्क्वाड्रन की कैनबरा एयर क्राफ्ट पर स्टिंगर मिसाइल से हमला कर दिया गया। हमले में क्षतिग्रस्त वायुयान शत्रु के स्थानों तथा इरादों की महत्वपूर्ण आसूचना संबंधी सूचनाएं प्रदान करते हुए सुरक्षित वापस लैण्ड कर गया। ऑपरेशन के दौरान मध्य वायु कमान के परिवहन वायुयानों तथा हेलीकॉप्टरों का पारिभारिकी सहायता के लिए बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया।
मानवीय सहायता तथा आपदा राहत
(क) विगत वर्षों के दौरान मध्य वायु कमान के परिवहन एवं हेलीकॉप्टर स्क्वाड्रन ने प्राकृतिक आपदाओं के समय देशवासियों को सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब कभी भी आपदा आई है तो ये लोगों के पास अत्यंत विषम परिस्थितियों में भी समय पर पहुँचकर सहायता पहुंचाते रहे हैं। उड़ीसा में भयानक चक्रवात-1999, 2001 में भुज में भूकंप, 2004 में सुनामी, 2013 में केदारनाथ में ‘ऑपरेशन राहत’, 2014 में श्रीनगर में ‘ऑपरेशन मेघ राहत’, बिहार, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में क्रमशः 2017 तथा 18 के दौरान भीषण बाढ़ तथा 2018 में केरल में बाढ़ के दौरान मानवीय सहायता तथा राहत मिशन अत्यंत ही कुशल तरीके से संपादित किये गये।
(ख) नेपाल में आये भूकंप के दौरान 25 अप्रैल से 05 जून 2015 तक मध्य वायु कमान द्वारा काठमांडू तथा पोखरा में बड़े पैमाने पर राहत कार्य ‘ऑपरेशन मैत्री’ संचालित किया गया जोकि विदेश की जमीन पर भारतीय वायु सेना द्वारा किया गया सबसे बड़ा राहत एवं बचाव अभियान है। किसी भी प्रकार की आपदा स्थितियों से निपटने के लिए मध्य वायु कमान के हेलीकॉप्टर हमेशा तैयार रहते हैं तथा जरुरत की हर घड़ी में सिविल प्रशासन को सहायता उपलब्ध कराते हैं। 11 मार्च 2004 को 23,250 फीट की ऊचाई से भारतीय वायु सेना की खोजी टीम को बचाने के लिए चीता हेलीकॉप्टर द्वारा विश्व की सर्वोच्च लैण्डिंग के लिए मध्य वायु कमान के ‘स्नो टाईगर’ को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में स्थान मिला है।