पूर्वी वायु कमान

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पूर्वी वायु कमान का इतिहास : पूर्वी आकाश के प्रहरी

1. भारतीय वायु सेना, पूर्वी वायु कमान (पूवाक), 12 राज्योंा के एक विशाल क्षेत्र पर हवाई संचालन को नियंत्रित करने वाला घातक हथियारों में से एक हैं सिक्क(म, पक्ष्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा और झारखंड का कुछ क्षेत्र और उत्तर पूर्व के सात राज्यों के साथ यह तीन लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हैं І यह चीन, नेपाल, भूटान, म्यां मार और बांग्ला्देश की 6300 किलोमीटर से अधिक लंबे अंतरराष्ट्रीय सीमा के हवाई क्षेत्र को भी नियंत्रित करता है І

2. पूर्वी वायु कमान (पूवाक) का मुख्यातलय शिलांग में एक शानदार स्था्न पर स्थित है, जिसे ‘पूर्व का स्कॉेटलैंड’ भी कहा जाता है І चाबुआ, गुवाहाटी, बागडोगरा, बैरकपुर, हासीमारा, जोरहाट, कलाईकुंडा, तेजपुर, सिलचर, मोहनबारी, पानागढ और तवांग, मेचुका, आलोंग, वालोंग, टूटिंग, विजयनगर, पासिधाट और जीरो एडवास लैंडिंग ग्राउंड्स (ए एल जी) जैसे स्थाई एयर बेस हैं जो देश के सुदूर पूर्व में स्थित दूरदराज के क्षेत्रों के लिए एयर लिफ्ट द्वारा वायु आपूर्ति की सुविधा मुहैया कराते है І

 

पूर्वी वायु कमान का विकास

पूर्वी वायु कमान की उत्पत्ति (पूवाक)

3. 1958 में तिब्ब्त पर चीनी कब्जा और भारत-तिब्बरत सीमा पर 1959 में चीनी की गतिविधियॉ चिंता बढाती जा रही थीं І परिणामस्वेरूप, 01 दिसंबर 1959 को, नंबर 1 ऑपरेशनल ग्रुप को एक नये कमांड के रुप में अपग्रेड कर पुर्वी वायु कमांड नाम दिया गया І पूर्वी वायु कमान (पूवाक) को शुरू में कोलकाता के रानीकुटीर में स्थारपित किया गया था І

4. एयर वाइस मार्शल के एल सोंधी ने नये वायु अफसर कमांडिग-इन-चीफ के रूप में इस कमान की बाग्डोर संभाली І इस फार्मेशन ने उसी दिन अपने मुख्यािलय को ईस्टІ इंटिया कंपनी द्वारा स्थापित मध्यक कोलकाता में स्थित मजबूत फोर्ट विलियम कम्प्लेक्स में आर्मी कमांड के साथ स्थाएनांतरित किया І इस दौरान, तुरंत कुछ नए स्काप ड्रन स्थामपित करने के साथ- साथ कुछ नए विमान भी शामिल किए गए І

5. 1959 में अपनी उत्पमति के समय, कमान में वायु सेना स्टे‍शन कलाईकुड़ा (पश्चिम बंगाल ) , वायु सेना स्टे‍शन, बैरकपुर (पश्चिम बंगाल), कार नकोबार में नंबर 1 एयरक्राफट स्टे जिेग पोस्ट,असम में वायु सेना स्टेशन जोरहाट, सिलिगुडी (पश्चिम बंगाल) में नंबर 3 टेक्टिकल एयर सेंटर और असम के जोरहट में नंबर 5 वायु सेना अस्पताल थे ।

6. जब राष्ट्र की समग्र सुरक्षा स्थिति तेजी से बदल रही थी उस समय दिसम्बर 1959 और अक्टुबर 1962 के बीच पुर्वी वायु कमान ने लगातर वृध्दि की । जैसे ही चीन ने बडी मात्रा में अपने सैनिकों को सीमा पर तैनात करना आरम्भ किया वैसे ही भारत को विशेष रुप से भारतीय वायु सेना की एयर लिफ्ट क्षमता को बढाने और अपनी सुरक्षा को मजबूत करने की आवश्यकता महसूस की । अरुणाचल प्रदेश जो पहले पुर्वोतर सिमांत एजेंसी कहलाता था में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिये 25 अक्टूबर 1962 में तेजपुर में नंबर 1 ग्रुप का गठन किया गया । इस फर्मेशन को समस्त नेफा सेक्टर की निगरानी की जिम्मेदारी सौपी गई । उस समय एयर वाइस मार्शल शिव देव सिंह पी वी एस एम ग्रुप के वायु अफसर कमान थे । अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये, ग्रुप ने तुरंत अपनी युद्धक क्षमता में वृध्दि करते हुए , कुछ और परिचालन युनिटों का गठन कर रणनीतिक रुप से अपने अधिकार क्षेत्र में स्थातपित किया ।

शिलॉन्ग में पूवाक मुख्याहलय का स्थापनांतरण

7. 1962 में भारत-चीन संघर्ष के बाद पूर्व में परिवहन समर्थन को बढ़ाने की आवश्याकता महसूस की गई । उसी समय देश के अन्यी हिस्सोंक में भी कुछ अन्यर कमानों के गठन की भी आवययकता महसूस की गई ।

8. कोलकता के पूवाक मुख्यानलय को 10 जून 1963 को मध्यम वायु कमान (CAC) के रूप में पुन: नया नाम देकर इलाहाबाद में स्थासनांतरित कर दिया गया । उसी दिन, नंबर 1 गुप तेजपुर से शिलांग में स्थाानांतरित हो गया और इसे पूर्वी वायु कमान मुख्यायलय के रूप में अपग्रेड किया गया । इसके बाद यह ऊपरी शिलांग के नोंगलीयर गांव में शिलांग-चेरापूंजी राष्ट्रीय राजमार्ग पर एलिफेंट फॉल्सद के सामने स्थित द्वितीय विश्र्व युद्ध के कुछ पुराने बैरकों से एक पूर्ण वायु कमान के रूप में काम करना आरंभ कर दिया ।

20 अक्टूयबर 1962 को, चीन ने भारत के नेफा NEFA (नॉर्थ ईस्ट र्न फ्रंटियर एजेंसी) और लद्दाख में एक आकस्मिक और व्यादपक हमला किया । बहुत कम समय में चीन द्वारा बड़े पैमाने पर योजना बद तरिके से हस्तवक्षेप का सामना करने हेतु इस दुर्गन क्षेत्र में हमारी सेना के पास संसाधन अपर्याप्ते थे । हालांकि, पूर्वी वायु कमान ने युद्ध क्षेत्रों में वायु रखरखाव समर्थन को शामिंल करने के साथ-साथ हेलिाकॅप्टिरों और परिवहन विमानों का प्रयोग करते हुए सैनिको को युद्ध क्षेत्रों में भेजने का कार्य भी किया ।

हवाई रखरखाव का कार्य गुवाहाटी में स्थित 48 स्क्वाड्रन (पैकेट), जोरहाट में स्थित 59 स्क्वाड्रन (ओटर्स) और 49 स्क्वाड्रन (डकोटा) द्वारा किया गया । इसके अलावा, बैरकपुर में स्थित 11 स्क्वाड्रन के दो डकोटा भी इस दौरान गुवाहाटी में तैनात थे ।

नेफा के कामेंग फ्रंटियर डिवीजन में मैक्मोहन लाइन के पार तनाव बडने के कारण भा वा से को असम राइफल्स के अग्रवर्ती चौकियों पर हवाई आपूर्ती का अतिरिक्त कार्य भी सौंपा गया था । सेना की दैनिक जरुरतों के साथ- साथ कामेंग फ्रंटियर क्षेत्र में स्थित 62 और 68 ब्रिगेडों और तवांग से आगे 7 माउंटेन ब्रिगेड अग्रवर्ती भंडारण का कार्य भी भारतीय वायु सेना द्वारा पूरा किया जाना था ।

अप्रत्याशित मौसम और उपयुक्त उतरने का स्थान न होने के कारण हेलिकाप्टर और परिवहन पायलटों की दक्षता एवं सहनशक्ति का परीक्षण किया गया । सेना की आपूर्ति को पूरा करने के लिए 59 स्क्वाड्रन के साथ – साथ 105 और 110 हेलिकाप्टर युनिटों ने नेफा में ना तैयार सतह पर साहसपूर्ण लेंडिग की ।

ओटरों ने तेजू से वालोंग तक एक ब्रिगेड (11 इंफैंट्री ब्रिगेड) को शामिल किया । वालोंग से वापसी के दौरान विमान ने कई लोगों की जान बचाई । यह स्क्वाड्रन जो मुख्य रुप से जोरहाट से कार्य करता था वहां से ओटरों की दो टुकडियों को तेजू स्थानांन्तरित कर दिया गया । इन वायुयानों ने टनों रसद, सैनिकों की आपूर्ति, और ह्ताहतों की निकासी का कार्य भी किया ।

बेल 2 सिकोर्स्की एस – 55 अंद बेल – 47 हेलिकाप्टरों के साथ 105 एच यू ने सामन गिराने और ह्ताह्तों की निकासी का कार्य भी किया । संग्धार हेलिपेड और ड्रापिंग जोन 7 ब्रिगेड के सबसे करीब थे और 20 अक्टुबर की सुबह , 105 एच यू के एक बेल-47 हेलिकाप्टर आश्चर्यचकित कर दिया जब वह एक निर्धारित उडान पर वहां पर उतरा तो पाया कि चिनीयों ने क्षेत्र को उजाड डाला है । इस दौरान चालक दल के स्क्वाड्रन लीडर वी के सेह्गल और सिगनल कोर के मेजर राम सिंह मारे गये और हेलिकाप्टर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया । स्क्वाड्रन लीडर ए एस विलियम्स जो उनकी तलास में आये थे को पता चल चुका था कि स्क्वाड्रन लीडर वी के सेह्गल से रेडियो सम्पर्क टुट चुका है । हालांकि, संग्धार पर दुश्मनों का कब्जा देख विलियम्स जैसे ही वापस मुडे उनके हेलिकाप्टर को चीनियों द्वारा गोली मार दी गई । वे मुस्किल से अपने हेलिकाप्टर को जिमिथांग के निकट उतारने में सफल रहे और उनको एक एम आई-4 हेलिकाप्टर द्वारा बचा लिया गया । हालांकि उनका हेलिकाप्टर पूर्ण रुप से क्षतिग्रस्त हो चुका था । इतने में एक तीसरा हेलिकाप्टर जब अपनी समान्य उडान से वापस लौट रहा था अचानक चीनी गोलीबारी के अंतर्गत आने के कारण जिमिथांग के निकट गायब हो गया । वापसी के दौरान अव्यवस्था के कारण वायु कर्मी एवं ग्राउंड स्टाफ को तीन दिन पैदल चल कर अपनी यात्रा पूरी करनी पडी । इस तरह 105 एच यू को तीन मूल्यवान हेलिकाप्टरों का नुकसान सहना पडा । नवम्बर 1962 में यूनिट को दो नए अल्लौटे – III हेलिकाप्टर प्राप्त हुए और इनसे सेला और डिरांग गैरिसन को समर्थन देना जारी रखा । इस अवधि के दौरान इस यूनिट ने त्संग्धर और लुम्पू हेलिपेड से रात – दिन कई हताह्तों की निकासी की | स्क्वाड्रन लीडर ए एस विलियम्स द्वारा एक ऐसे ही साहसिक रात्री निकासि उडान के दौरान रात्री उडान सुविघा न होते हुए भी केवल एक टार्च लाइट का प्रयोग करते हुए एक गम्भीर रुप से घायल सैनिक को निकालने का कार्य किया । विलियम्स ने बाद के सप्तहों में कई खोज और ह्ताहत निकसी मिश्नों को अंजाम दिया और युद्ध के अंत मे वीर चक्र से सम्मानित किया गया ।

110 एच यू, एक अन्य हेलिकप्टर यूनिट जो केवल सितम्बर में ही स्थापित हुई थी जिसने युद्ध में सक्रिय रुप से भाग लिया था । इस यूनिट ने बडे और बेह्तर एम आई -4 हेलिकाप्टरों का प्रयोग किया । बहुत कम समय में यूनिट ने गहन प्रशिक्षण की सहायता से पूर्ण रुप से युद्ध के लिए तैयार हो चुके थे । यूनिट मुख्य रुप से तेजपुर से संचालित होती थी और त्वांग सेक्टर के लिये उडान भरती थी । अक्टुबर के शुरुआत में त्वांग क्षेत्र में मी-4 ने फोटो मिशनों के दौरन देखा और थांग्ला पर्वत श्रेणी के उस पार भारी फौजी तैनाती की सूचना दी । 26 अक्टुबर को वालोंग सेक्टर में तीन हेलिकाप्ट्रों की टुकडी भेजी गई । वहां इन मशीनों ने वालोंग में सेना के जमावडे में ओटर्स की सहायता की । एक बार जब जमीनी सैनिकों की व्वपसी शुरु हुई, तो हेलिकाप्टरों ने वापस आने वाले सैनिकों के लिये राशन गिराने और घयलों को वहां से उठाने का कार्य किया । कई सेना के जवान अपनी जिंदगी का श्रेय न थकने वाले हेलिकाप्टर पायलटों को देते हैं । आपुर्ति अभियानों के दौरान, 16 नवम्बर को वालोंग में एक हेलिकाप्टर को मार गिराया । हालांकि चालक दल सेना के साथ भागने में सफल रहा ।

110 HU, the other helicopter unit which actively participated in the war, was raised only in September. This unit operated the bigger and better Mi-4 helicopter. In a short time the unit had attained a fully combat-ready status through intensive training. The unit mainly operated from Tezpur and carried out sorties in the Tawang sector. The Mi-4s carried out visual and photo reconnaissance missions in Tawang sector in early October and reported heavy troop build-up across the Thagla Ridge. A detachment of three helicopters was sent to Walong Sector on 26 Oct. There, these machines helped the Otters in the Army build up at Walong. Once the withdrawal of ground troops commenced, the helicopters dropped rations for withdrawing columns and picked up the wounded. Many Army men owe their life to the brave and untiring helicopter pilots. During the supply missions, one helicopter was shot down in Walong on 16 Nov. The crew however managed to escape along with the Army.

1965 का भारत – पाक युद्ध

पूर्वी क्षेत्र में वायु सेना का संचालन दो वायु सेना कमानों के अंतर्गत आता है यानी पूर्वी वायु कमान एवं मध्य वायु कमान । असम और उससे आगे पूर्व वाले बेस पूवाक के अंतर्गत आते हैं और पश्चिम बंगाल (कलाईकुंडा, बैरेकपुर, और बागडोगरा) और पश्चिम में उससे आगे आगरा तक के बेस म वा क के अंतर्गत आते हैं ।

कलाईकुंडा के केंबरा स्क्वाड्रन और हंटर स्क्वाड्रन के सैनिकों को बैरेकपुर के वेम्पायर स्क्वाड्रन द्वारा जोड दिया गया । अन्य हंटर स्क्वाड्रनों को जोरहाट और चाबुआ में बसाया गया । चाबुआ का स्क्वाड्रन जो पहले गुवाहाटी में था से संचालन करता था । पूवाक के पास एक ऑरागन (तुफानी) स्क्वाड्रन (न. 4) था जो हासीमारा से भी संचालित किया जाता था ।

कलाईकुंडा के केंबरा स्क्वाड्रन और हंटर स्क्वाड्रन के सैनिकों को बैरेकपुर के वेम्पायर स्क्वाड्रन द्वारा जोड दिया गया । अन्य हंटर स्क्वाड्रनों को जोरहाट और चाबुआ में बसाया गया । चाबुआ का स्क्वाड्रन जो पहले गुवाहाटी में था से संचालन करता था । पूवाक के पास एक ऑरागन (तुफानी) स्क्वाड्रन (न. 4) था जो हासीमारा से भी संचालित किया जाता था ।

पश्चिमी क्षेत्र में पीएएफ के साहसिक हमलों के बाद, पुर्वी थिएटर में 06 सितम्बर को भा वा से की जबाबी हमले की योजना की कार्रवाई की गई ।

अगर पी ए एफ के विमान जमीन पर हैं तो उनके हमले को बेअसर करने के लिए मवाक की योजना द्वारा कैनबरा की एक जोडी ने चिटगांव पर सुबह धावा बोल दिया । विंग कमांडर पी एम विलसन की अगुवाई में नंबर 16 स्क्वाड्रन के दो कैंबरा विमानों द्वारा कम उंचाई पर विमान उडाने की योजना बनाई । चिट्टागांव पर सुरक्षित पारगमन और विपक्ष द्वारा संभावित हमले को ध्यान में रखते हुए दो विमानों के बीच 10 मिनट का समय अंतराल की अनुमति दी गयी थी । उसमें से नंबर 2 विमान को दूसरे लाइटहाउस की परिक्र्मा उस समय तक करनी थी जब तक उसे वापस नहीं बुलाया जाता और विपक्ष द्वारा संभावित हमला न हो ।

नंबर 14 स्क्वाड्रन के हंटर जो पहले कलाईकुंडा में थे एक साथ उडान भरकर तेजगांव/ जेशोर क्षेत्र को पुर्ण रुप से नष्ट करने के पश्चात तेल भरने, हथियार लोड करने के लिए दमदम हवाई अडडे पर उतरे और तेजगांव पर हवाई हमला किया । तेजगांव पर चार हंटरों ने हमला किया जिन्हें दो और हंटरों ने वायु सुरक्षा की भूमिका को समर्थन देने का कार्य फ्लाईट लेफ्टिनेंट कूक और फ्लाईंग अफसर एस सी ममगाईन ने किया । न. 4 और 29 स्क्वाड्रन के तुफानी (औरागोंस) को लाल्मुनिर्हाट पर हमला करने जबकि बैरकपुर के वेम्पायर विमानों को जेसोर का कार्य सौपा गया ।

विंग कमांडर पी एम विल्सन की अगुवाइ में कलाईकुंडा के दो कैंबरा को खराब मौसम के बावजूद चट्ट्गांव हवाई पट्टी पर बमबारी की । हालांकि विल्सन द्वारा गिराए गए बम विस्फोट होने में विफल रहे , लेकिन दूसरे विमान (स्क्वाड्रन लीडर कार्वे) द्वारा गिराए गए बम हवाई पट्टी पर फट गए । दुर्भाग्य पुर्ण जमीन पर दुश्मन का कोई विमान नहीं देखा गया था ।

इस तरह वैम्पायर खराब मौसम से बाधित होने के कारण बिना किसी परिणाम के अपना पहला किए बिना वापस लौट आए । हालांकि, कमांडिग अफसर और स्क्वाड्रन लीडर बनर्जी जो नेतृत्व कर रहे थे दोबारा हमला करने की सोची और जेसोर हवाई पट्टी को अपना निशाना बनाया और दूसरी बार एक अलग –थलग पडे हेंगर पर हमला कर दिया । इसलिए, हंटर जो जेसोर को पुर्न रुप से नष्ट कर चुके थे वास्तव में बनर्जी के वेम्पायर विमान की रक्षा कर रहे थे ।

कलाईकुंडा की पहली उडान में दो कैनबरा थे जो वापस लौट आए, पूर्वी मोर्चे पर पीएएफ ने 14 स्क्वाड्रन (पीएएफ ) के स्क्वाड्रन लीडार शब्बीर सैयद की अगुवाई में पांच साबरे विमानों के साथ 0640 बजे कलाईकुंडा के उपर जवाबी हमला किया । उन्होने 24 स्क्वाड्रन के चार वेम्पायर विमानों के साथ –साथ विलसन और कार्वे के कैंबरा को भी क्षतिग्रस्त कर दिया था । पाकिस्तान के विमान ऐसा इसलिए कर पाए क्योंकि भारत के हंटर उस समय दमदम और कलाईकुंडा के बीच गस्त कर रहे थे उअर इसी का फायदा उठाते हुए पाकिस्तान वायु सेना ने समुंद्र के किनारे हवाई विरोध न होने से कम उंचाई पर उडान भरते हुए कलाईकुंडा पर हमला कर दिया । पी एफ ए ने दुसरी बार उडान के दौरान थोडा सा एहसास किया कि इस बार भारतीय वयु सुरक्षा तैयार और प्रतीक्षा कर रही होगी । 55 एस यू द्वारा चार साबरों को रडार पर देखा, फ्लाईट लेफ्तिनेंट अल्फरेड कूक और फ्लाईंग अफसर मम्गईन जो कलाईकुंडा से 60 मील उत्तर में कैप मिशन पर थे बेस पर वापस बुला लिया गया । संयोग से दिन के शुरुआत में कूक और मम्गईन को पीएएफ साबरों के साथ अचानक संघर्ष करना पडा । जैसे ही कूक और मम्गईन कलाईकुंडा के उपर पहुंचे तो उन्होने साबरों को उनके उपर हमला करते देखा उअर यह देखते ही वे दोंनो एक दुसरे से अलग हो गए और साबरों से निपटने के लिए आगे बढे गये । एक मिस्मयकारी बहुत ही कम उंचाई की डग फाईट को सैकडों छार्त्रों ने देखा जिसमें दो चौदह वर्षिय भी दब गय (बाद में गन केमरा फिल्म ने भी प्रमाणित किया)। कूक ने चार अलग-अलग साबरों पर गोलीबारी की । जिसमें से एक कलाईकुंडा के निकट दुर्घटनाग्रस्त हो गया और अन्य तीन भागने में सफल रहे, जो युद्ध के योग्य नहीं रहे (उनमे से एक सीमा के पार दुर्घटनाग्रस्त हो गया था) । कूक और मम्गईन दोनों को उनके अदम्य प्रयासों के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया गया ।

इस बीच, पूवाक की अपनी योजनाएं थीं । गुवाहाटी में स्थित डिटेचमेटं को गलती से स्टेिशन कमांडर द्वारा तेजगांव के बजाय कुर्मिटोला पर हमला करने का काम सौंपा, जिससे लड़ाई में सावरों को नष्टद करने का एक उत्कृ्ष्टह अवसर खो दिया । तदनुसार, गुवाहाटी के तीन हंटरों ने कुर्मीटोला के लिए उड़ान भरी । खराब मौसम और अल्पलदृश्यदता ने नेविगेशन में बाधा डाली । फिर भी तीनों विमानों की पहचान कर एयरफ़ील्ड पर बमबारी की और उनके अन्ये ठिकानों पर राकेटों से हवाई फायर किया । हासीमारा के ओरागन (तुफानी) ने लाल मुनीर हाट में कई वाहनों और जीपों को नष्ट करने का दावा किया ।

युद्ध के बाद के दिनों में उच्च संरचनाओं के निर्देशों पर भारतीय वयु सेना द्वारा किसी भी आक्रामक कार्रवाई की योजना नहीं बनाई गई थी । अधिकांश स्ट्राइक विमान देश ने अंदर ही बेसों की सुरक्षा जैसे गोरखपुर पर उडान भरते रहे जबकि वायु सुरक्षा विमानों ने आकाश की रक्षा में कैप (CAP) मिशन को जारि रखा । पाक सैबर्स ने हालांकि 10 सितम्बर को बागडोगरा ह्वाई पट्टी पर हमला किया जिसमें एक पैकेट और एक वैम्पायर को नुकसान पहुंचा । 14 सितम्बर को फिर से तीन एफ-86 विमानों ने बैरकपुर पर हमला किया और उडान नियंत्रण टावर को क्षतिग्रस्त करने के साथ साथ एक पैकेट और एक डकोटा को भी नष्ट कर दिया । शत्रु विमानों ने अगरतल्ला हवाई पट्टी पर भी हमला किया ।

1971 का भारत – पाक युद्ध

युद्ध के लिए हवाई अभियान की भूमिका नवम्बर के शुरुआत में ही रखी जा चुकी थी जब भारतीय वायु सेना के 22 स्क्वाड्रन के नेट और पाक के 14 स्क्वाड्रन के साबर विमानो के बीच पहली भिड्त 22 नवम्बर को पूर्वी पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी भाग मे स्थित बोयरा नामक स्थान पर हुई । जब पी ए एफ के साबर्स के साथ लगभग चौदह काफी टैंकों द्वारा लगातार हवाई हमलों होते रहे जब तक पी ए एफ के 107 ब्रिगेड समर्थन के लिए नहीं बुला ली गई फिर भी भारतीय थल सेना के 9 वें डिवीजन ने बोयरा और गरीबपुर के इलाकों पर कब्जा करके जेसोर की दिशा में महत्वपुर्ण प्रगति की थी । 21 नवम्बर को जवाबी कार्यवाही में में 22 स्क्वाड्रन के चार नेट विमानों ने दो मौकों पर संघर्ष किया लेकिन जब भारतीय वायु सेना के विमान बोयरा पर पहुंचे, तब तक पी ए एफ के सबर विमान उस इलाके से गायब हो चुके थे । हालांकि, 22 नवम्बर को भारतीय वायु सेना के नेट और पी ए एफ के सबर विमानों के बीच हुई उच्च कोटी की डांग फाइट में, पी ए एफ स्कवाड्रन के कमांडिंग अफसर विंग कमांडर चौधरी अपने क्षतिग्रस्त विमान के साथ वापस भागने में कामयाब रहे, परन्तु उनके दो सदस्यों को फ्लाईट लेफ्टिनेंट रॉय मैसी, फ्लाइंग अफसर लाजारुस, गणपथी और सोरेस ने मार गिराया । फ्लाईट लेफ्टिनेंट रॉय मैसी, फ्लाइंग अफसर लाजारुस और गणपथी भा वा से के इस युद्ध के पहेले वीर चक्र पुरस्कार विजेता थे ।

पश्चिमी सीमा के निकट भारतीय हवाई पट्टियों पर पी ए एफ के हमले की खबर पहेल ही पूर्वी वायु कमान के आप्स रुम को 03 दिसम्बर 1800 बजे प्राप्त हो चुकी थी । वायु अफसर कमांडिंग – इन-चीफ, एयर मार्शल एच सी देवान ने पुर्वी वायु कमान के तहत सभी सेनाओं को तुरंत चौकन्ना कर दिया था । 03-04 दिसम्बर की रात को तेजगांव और कुर्मीटोला हवाई क्षेत्रों पर केंबरा विमानों ने हमला करने के अपने मिशन को अंजाम दिया ।

भारतीय वायु सेना के कुछ हवाई क्षेत्रों और ढाका परिसर में मौसम को ध्यान में रखते हुए जवाबी हवाई कार्रवाई को 04 दिसम्बर को 0705 बजे हमला करने का आदेश दिया गया । हासीमारा के 37 और 17 स्कवाड्रन के आठ हंटर विमानों को गुवाहाटी के मिग विमानों द्वारा मार्गरक्षण कर ढाका के पास तेज्गांव हवाई पट्टी पर पहली बार हमला किया । इसके बाद, तेजगांव और कुरमीटोला (ढाका के पास भी) दोनों हवाई क्षेत्रों पर लगातार दवाब बनाए रखा गया था । पीएएफ ने ढाका के उपर हवाई युद्ध में सात एफ-86 साबर विमानों को खो दिया, इसके अलावा तीन साबर, एक यातायात और दो हल्के विमान भी जमीन पर क्षतिग्रस्त या नष्ट हो गए (इस बात की पुष्टि आत्मसमर्पण के बाद ढाका के पाक वायु अफसर कमांडिंग ने की) । ऐसे ही एक मिशन के दौरन 14 स्क्वाड्रन (हंटर) के कमांडिग अफसर विंग कमांडर एस सुंदरेशन और उनके न0 – 2 फ्लाईट लेफ्टिनेंट ट्रेमेनहेयर को तेजगांव के उपर छ साबर विमानों ने हमला कर फ्लाईट लेफ्टिनेंट ट्रेमेनहेयरको लडाई के दौरान मार गिराया परंतु वे सुरक्षित रुप से बाहर निकल गए । नेता विंग कमांडर सुंदरेशन इस बीच उस साबर विमान के पिछे लाग गये जिसने उनके न0 – 2 को मार गिराया था को मार गिराने में सफल रहे । दिन भर तेजगांव और कुरमीटोला के हवाई पट्टी पर हंटरों द्वारा हमला होता रहा और मिग उन्हे उपर से सुरक्षा प्रदान करते रहे ।

05 दिसम्बर को इस दिन का मुख्य कार्य शेष पाक एफ-86 विमानों को वहां से समाप्त करना और थल सेना को समर्थन बढाना था । ढाका के पास तेजगांव और कुरमीटोला हवाई क्षेत्रों पर बमबारि करके पाक वायु सेना को जमीन पर लाना का निर्णय लिया गया था । पिछली दो रातों के दौरान केनबरा द्वारा हमलों में हवाई पट्टी को कोई नुकसान नहीं हुआ, इसलिए मिग - 21 विमानों को 500 किलोग्राम और 1000 पाउंड बमों के साथ हवाई पट्टी पर हमला करने के लिए तैनात किया गया । आठ मिग द्वारा बमबारी बहुत ही सटीक थी और हवाई पट्टी पर गहरे गड्डे हो गए थे । मिग के एक पायलट द्वारा हाथ से लिए गए कैमरे से खींची गई तस्वीरों में हवाई पट्टी पर बमों को फटते हुए दिखाया गया है । यह पायलट तेजगांव हवाई पट्टी के फोटो लेकर आया जिसमें स्पष्ट रुप से लेआउट को दर्शाया गया था और ऐसे मिश्नों के लिए पायलटों को विस्तृत ब्रीफिंग के लिए बहुत ही उपयोगी थे ।

05 दिसम्बर की दोपहर मे पाक वायु सेना को वस्तूत: धूल चटाने के बाद कलाईकुंडा में तैनात एक मिग – 21 स्कवाड्रन को पश्चिम में स्थानांतरित कर दिया गया । इसके आठ विमान 05 दिसम्बर शाम को और चार 08 दिसम्बर को चंडीगड पहुंचे । ए एन-12 और पैकेट बेडे ने स्क्वाड्रन विशेष तैनाती का अत्यधिक समर्थन किया ।

06 दिसम्बर को आर/टी अवरोधन के कारण का बारीसाल में एक अवतरण पट्टी की खोज की जो उपयोग करने योग्य् थी । हवाई पट्टी और एक हैंगर पर बमों और बंदुकों से हमला किया गया और पूरी तरह से उपयोग में न आने लायक कर दिया । इस हमले के बाद बारीसाल हवाइ पट्टी को नोसेना को सौंप दिया गया । पुर्व में मुख्य वायु रक्षा के प्रयासों से तेजगांव और कुरमीटोला पर लगातार हमले जारी रहे तकि उन्हें पुरी तरह से नष्ट किया जा सके ।

पूर्ण वायु श्रेष्ठ्ता के परिणामस्वरुप, बारतीय वायु सेना जमीनी हमले की भूमिका में नेट और मिग विमानों का उपयोग करने में सफल रही । बागडोगरा से पांच नेट विमानों को 2 कोर के संचालन का समर्थन करने के लिय दमदम ले जाया गया । इसके अलावा, सभी दस उपयोगी विमानों को भी न0 – 7 स्कवाड्रन (हंटर) को पश्चिम में संचालन के लिए बागडोगरा से नाल में स्थानांतरित कर दिया गया ।

08 दिसम्बर को ढाका हवाई क्षेत्रों के खिलाफ मिग विमानों द्वारा जवाबी हवाई कार्रवाई जारी रही जबकि नेट एवं हंटर विमानों ने बारिसाल और ईशुर्डी पर हवाई हमला किया । इस दिन तेजगांव और कुरमीटोला दोनों के पूरे फोटो भी प्राप्त किए गए । उसमें हवाई क्षेत्रों और प्रतिष्ठानों का स्पष्ट रुप से क्षति को दर्शाया था । चूंकि, पाक वायु सेना से कोई और खतरा नहीं था, इसलिए कुछ रडार स्टेशनों पर तैनाती को छोडकर , पूर्व में स्थित सभी हवाई सुरक्षा गनों को पश्चिमी क्षेत्र में भेज दिया गया । करीबू विमानों ने तेजगांव और कुरमीटोला हवाई क्षेत्र पर 08/09 दिसम्बर को अपनी रात्री उडान को जारि रखा ।

हवाई पट्टी की मरम्मत को रोकने के उद्देश्य से 09 दिसम्बर को वायु रक्षा संचालन बनाए रखा ।

11 दिसम्बर को दिन के दौरान एक खुफिया रिपोर्ट द्वारा सभी संदेह में आ गए कि छ: पाक विमान उस रात मेजर जनरल फरमान अली और अन्य वरिष्ठ पाक अधिकारियों की निकासी के प्रयास में ढाका के निकट उतरने का प्रयास करेगा । इस प्रयास को विफल करने के लिए उपाय किए गए । शाम को चटगाँव हवाई क्षेत्र पर हमला करने के लिए कैंबरा विमानों को तैनात किया गया । उनमें से दो ने हवाई पट्टी और टैक्सी ट्रेक पर बमबारी की । 11/12 दिसम्बर की रात को, भारतीय वायु सेना ने ढाका क्षेत्र पर निरंतर दबाव बनाए रखा । जोडे में आठ कैंनबरा विमानों ने 0230 और 0400 बजे के बीच कुरमीटोला और तेजगाँव हवाई पट्टी पर बमबारी की । तेजगाँव के विरुद्ध पहली बार बडे 4000 पाउंन्ड के उच्च कोटि के विस्फोटक बम का प्रयोग किया गया । उनका उद्देश्य विस्फोट के प्रभाव से इमारतों को अधिकतम नुकसान पहुंचाने का था । युद्ध बिराम के बाद जो तस्वीरें ली गई थी उनसे यह स्पष्ट हो गया था कि हल्के विमान और अधिकारी मैस पूरी तरह से उनके द्वारा नष्ट कर दिए गए थे । चार मिग एवं दो कैरीबो विमानों ने भी इस क्षेत्र पर निरंतर निगरानी बनाए रखी । इन विमानों ने कैंनबरा हमलों के बाद और पह्ले की अवधी को पुरा करने के लिए अलग-अलग अंतराल पर अकेले संचालित किया । उस रात को भी पाक विमान उस इलाके में नहीं घुसे । इस दिन, अगरतल्ला से आइजोल की उडान पर एक भारतीय वायु सेना का एम आई-4 हेलिकाप्टर हवा में आग लगने के कारण विवस्तापुर्ण उतारना पडा । यह पूरी तरह से नष्ट हो गया लेकिन कोई हताहत नहीं हुआ ।

तेजगाँव और रंगपुर के खिलाफ मिग और हंटर विमानों द्वारा जवाबी हवाई कार्रवाई के बाद 12 दिसम्बर को ढाका से विदेशी कर्मियों की निकासी के सक्षम करने के लिए हवाई संचालन को निलंबित कर दिया गया । 13 दिसम्बर को 1500 बजे निकासी के बाद परिचालन फिर से शुरु किया गया । मिग विमानों ने हवाई पट्टी के मरम्मत वाले हिस्से पर बमबारी करके तेजगाँव हवाई पट्टी को दोबारा अनुपयोगी बना दिया ।

सिलहट, भैरब बाजार और कोमिला के पाक सैनिकों के पाकेट्स कडा मुकाबला कर रहे थे । 09 दिसम्बर को कुम्भीरग्राम से चार नेट विमानों को भेज कर अगरतल्ला को एक लडाकू बेस के रुप में सक्रिय किया गया । 15 दिसम्बर को दमदम से सात नेट विमान स्थानांतरित किए गए । इन नेट विमानों को ढाका की तरफ तेजी से बढ्ते हुए 4 कोर के सैनिकों द्वारा अलग – थलग किए गए शत्रुओं के पाकेटों के विरुद्ध तैनात किया गया था ।

अपने इतिहास में पहली बार भारतिय वायु सेना ने 11 दिसम्बर को ए एन-12, डकोटा और पाकेट विमानों का उपयोग करके दुश्मन के इलाके में ब्डे पैमाने पर हवाई संचालन किया । तांगेल पर 2 पैरा बटालियन और पैरा ब्रिगेड के 50 लोगों के सामान को (स्वतंत्र) हवा में उपर से उतारना एक अनुकरणीय अभियान था जो हमारी सटीक योजना और उच्च स्तरिय व्यवसायिकता को उजागर करता है । एम आई – 4 का उपयोग पानी की बाधाओं पर व्यापक रुप से एयर ब्रिजिंग परिचालनों के लिए किया गया ।

14 दिसम्बर को पूर्वी पकिस्तान में नागरीक प्रशासन की उच्च स्तरीय बैठक के बारे में भारतीय खुफिया एजेंसियों को एक संदेश के प्राप्त होने के आधार पर ढाका के विरुद्ध 28 और 4 स्कवाड्रन के मिग – 21 विमानों ने आक्रमण किया । यह 1971 के संर्घष का प्रमुख मोड था ।

भारतीय वायु सेना द्वारा 03 दिसम्बर से 14 दिसम्बर की अवधि के दौरान हवाई पट्टियों पर ऐसे निरंतर हमलों के कारण वायु समर्थन अभियानों, सैनिकों का हवाई परिचालन, हथियार, गोला बारुद, खाध आपूर्ति को पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान वायु सेना के संचालन को पूरी तरह से ठप हो गई इससे पाकिस्तानी सेना को 15 दिसम्बर को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया गया ।

अन्य परिचालन

इन युद्धों के अलावा अस्सी के दशक के अंत में पूर्वी वायु कमान के स्कवाड्रनों को श्रीलंका में आई पी के एफ (IPKF) और मालद्विप में ऑपरेशन केक्टस के लिए तैनात किया गया था । उत्तर पूर्व में उग्रवाद पर कार्रवाई, निकासी और प्राकृतिक आपदा जैसे चक्र्वात, सुनामी तथा भूकम्प के दौरान खाद्य सामग्री आपूर्ति गिरावट में पूर्वी वायु कमान द्वारा निभाई गई भूमिका प्रशंसा के परे है ।



अनुरक्षण कमान का जनसंपर्क अधिकारी का विवरण

विंग कमांडर रतनाकर सिंह
लोक संपर्क अधिकारी (रक्षा) शिलोंग
रक्षा मंत्रालय
एम ई स टी / 42 , शिलोंग छावनी - 793001
दूरभाष संपर्क संख्या
दफ्तर:- 0364-2546047
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