उत्तरी कर्नाटक में 29 सितंबर 2009 से शुरू हुई मूसलाधार बारिश से कई जिले बाढ़ की चपेट में आ गए और बीजापुर, बागलकोट और बेल्लारी के इलाके अलग-थलग पड़ गए, कुछ इलाकों में तो एक ही दिन में 50 सेमी. से अधिक बारिश दर्ज की गई। कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों में बाढ़ का पानी भर गया। कर्नाटक ने एक ही दिन में अलमट्टी और नारायणपुर बांधों से रिकॉर्ड 25 लाख क्यूसेक पानी छोड़ दिया। आंध्रप्रदेश में भी सितंबर के आखिरी हफ्ते में जोरदार बारिश हुई जिससे सभी जलाशयों में ऊपर तक पानी भर गया। पहली अक्तूबर को खबर मिली कि मंत्रालयम नगर में पानी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा था। पानी का स्तर इतना बढ़ गया था कि नदी के किनारे से एक किलोमीटर तक के अधिकांश रिहाइशी गांव पानी में डूब गए।
हेलिकॉप्टर से बचाव कार्य
पानी का स्तर इतना बढ़ा हुआ था कि नदी के किनारे से लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित गांव पूरे का पूरा पानी में डूब चुका था। सबसे नजदीकी किनारा भी अब बहुत दूर हो गया था और बाढ़ का पानी घरों की छतों तक पहुंच रहा था और छतों पर फंसे लोग जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहे थे, गांव वालों को पता नहीं था कि वे अगले घंटे तक जीवित रहेंगे या नहीं। तभी उनके बचाव के लिए भारतीय वायु सेना के हेलिकॉप्टर वहां पहुंचे। ग्रुप कैप्टन राजेश इस्सर की कमान में भारतीय वायु सेना के चार हेलिकॉप्टरों को आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के बाढ़ग्रस्त इलाकों में फंसे लोगों को बचाने और राहत पहुंचाने का काम सौंपा गया। दो अक्तूबर को यह कार्य बहुत चुनौतीपूर्ण हो गया क्योंकि वहां हालात बहुत खराब थे और गांव वालों को बचाना बहुत जरूरी था। खराब मौसम के कारण यह कार्य और भी चुनौतीपूर्ण हो गया। परंतु भारतीय वायु सेना के वायु योद्धाओं ने इस बचाव और राहत मिशन को बड़ी कुशलता से उत्साह एवं जोश के साथ बखूबी अंजाम दिया।
ये हालात उस समय और भी मुश्किल हो गए जब कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों पर बने सड़क(रोड) पुल बीच-बीच में से टूटने के कारण ईंधन बाउज़र का कर्नूल पहुंचना असंभव सा हो गया। एक ओर ईंधन बाउज़र कर्नूल से 20 एम एम की दूरी पर फंस गया और दूसरी ओर इन बचाव/राहत ऑपरेशनों के लिए ईंधन का होना बहुत जरूरी था। हालात की गंभीरता को देखते हुए टास्क फोर्स कमांडर ने तुरंत उड़ान भरी और पूरी स्थिति देखने पर उन्हें पता लगा कि उस पूरे इलाके में कहीं भी सूखी जगह नहीं थी जहां से बाउजर बारिश की वजह से गीली मिट्टी में धंसे बिना पहुंच पाता। उड़ान सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग पर लैंडिंग के लिए एक जगह चुनी गई और एन एच-7 से ऑपरेट करने का निर्णय लेकर बचाव और राहत मिशनों को अंजाम दिया गया।
इस दौरान कुल आठ बचाव मिशनों में उड़ान भरकर 47 लोगों की जान बचाई गई, जिन्हें बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। हर मिशन बहुत खतरनाक और चुनौतियों से भरा था। इन मिशनों में घरों की छतों पर फंसे हुए और पेड़ों पर पनाह लिए हुए लोगों को बचाया गया। एक जगह छत पर नौ लोग फंस गए थे। पानी के तेज होते बहाव में आधा घर और चार लोग बह गए, और बाकी के टूटे घर में पांच लोग जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहे थे। किस्मत से उसी समय एक चेतक हेलिकॉप्टर उनके लिए मसीहा बनकर आया। जिला कलेक्टर की रिपोर्ट के अनुसार सभी लोगों को एक भी क्षण गंवाए बिना विंच से उठा लिया गया।
एक और मामले में तेज बहाव वाली नदी के बीच पेड़ पर एक परिवार फंसा हुआ था जिसमें पति, पत्नी और उनके चार से छह साल की उम्र के दो छोटे-छोटे बच्चे थे। पेड़ की शाखाएं चारों और फैली हुई थीं, इसलिए पेड़ के बीच से इन लोगों को बचाना आसान काम नहीं था। ऐसा कोई निर्धारित आदेश या प्रक्रिया नहीं थी जिसमें यह बताया गया हो कि ऐसे मिशन को किस प्रकार अंजाम दिया जाए। परंतु चेतक हेलिकॉप्टर के कर्मियों ने अपनी प्रवीणता और अनुभव से पूरे परिवार को बचा लिया। उनको बचाने के बाद क्रू ने देखा कि उनकी हालत बहुत खराब थी, उनकी खाल पूरी तरह झुलस चुकी थी और पपड़ियां उतर रहीं थीं। वे उस पेड़ पर 72 घंटे से भोजन, पानी और सोए बिना फंसे हुए थे। दुनिया भर के हेलिकॉप्टर पायलट ऐसे हर मिशन के बाद अपने हेलिकॉप्टरों पर नाज़ करते हैं।
सात दिन की इस कठिन परीक्षा के दौरान कई राहत मिशनों को बखूबी अंजाम दिया गया। भोजन, पानी और दवाओं सहित लगभग 1,20,000 किग्रा. राहत सामग्री जरूरतमंदों तक पहुंचाई गई, जिन्हें इसकी बहुत जरूरत थी। लोग घरों की छतों पर फंसे हुए थे और छोटे चेतक हेलिकॉप्टर एक-एक छत पर जरूरी सामान गिरा रहे थे। यह काम बहुत मुश्किल था क्योंकि जिस जगह पर भोजन/पानी गिराना था, वह बहुत छोटी थी और उसके चारों ओर नदी का बहाव बहुत तेज था। परंतु, भारतीय वायु सेना ने इन मिशनों को बड़े सटीक और कारगर तरीके से पूरा किया। ये राहत सामग्री मुसीबत में फंसे लोगों की न केवल शारीरिक आवयकताएं पूरी करने के लिए अपितु उनमें 'जीने की इच्छा' और एक नए दिन जीने की उम्मीद पैदा करने के लिए भी जरूरी थी।
ये सभी मिशन भारतीय वायु सेना के सात हेलिकॉप्टरों द्वारा असाधारण तरीके से पूरे किए गए। इनमें से हर एक मिशन कठिन चुनौतियों से भरा था, चाहे वह पायलटों द्वारा बाढ़ पीड़ितों को राहत पहुंचाने का हो अथवा उन्हें बचाने का, सभी मिशनों को बड़ी कुशलता से पूरा किया गया। इस पूरे मिशन को कर्नूल के जिलाधीश ने 07 अक्तूबर 09 को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में बिल्कुल सही बयां किया, '' कर्नूल के लोग भारतीय वायु सेना के हेलिकॉप्टरों की मदद के लिए हमेशा एहसानमंद रहेंगे। भारतीय वायु सेना ने न केवल 47 लोगों की जान बचाई, बल्कि हर रोज 6000-7000 लोगों के मन में बचने की उम्मीद पैदा की, उनके दिलों में यह विश्वास हो गया था कि मदद करने वाले हाथ उनके आस-पास ही हैं।''