हमारा आदर्श वाक्य है ‘सर्वदा गगने चरेत्’ (हमेशा आकाश में उड़ते रहना) ’
और भारतीय वायु सेना को समर्थ बनाना ‘नभः स्पृशं दीप्तम्’ (आकाश को चमक के साथ स्पर्श करना)
26 जनवरी 1955 को कानपुर में अनुरक्षण कमान की स्थापना हुई थी। एयर वाइस मार्शल हरजिन्दर सिंह एम बी ई, पी वी एस एम, इस कमान के प्रथम वायु अफसर कमांडिंग-इन-चीफ थे। स्वतंत्रता के पहले से ही कानपुर अनुरक्षण क्रियाकलापो का केन्द्र था। मरम्मत तथा एयरक्राफ्ट के उत्पादन डिपो के साथ-साथ एकलौता बेस मरम्मत डिपो कानपुर में था। बाद में एव्रो एयरक्राफ्ट के उत्पादन हेतु एयरक्राफ्ट उत्पादन डिपो की भी स्थापना हुई। भारत के औद्योगिक क्रांति के परिपेक्ष में जब भारतीय वायु सेना की भूमिका को स्पष्ट रूप से परिभाषित कर दिया था, तब एयरक्राफ्ट उत्पादन डिपो को हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड का यह अनुभाग आज ट्रान्सपोर्ट एयरक्राफ्ट डिवीजन कहलाता है और यह चकेरी कानपुर में स्थित हैं। यथापि आने वाले समय में भारतीय वायु सेना का विस्तार होना था और कानपुर अकेला भविष्य के औद्योगिक क्रियाकलापो को वहन नही कर सकता था अतः नागपुर में अनुरक्षण कमान मुख्यालय को स्थापित किया गया।
बेस मरम्मत डिपो का क्रेस्ट
पौराणिक कथा के अनुसार अरब में फीनिक्स नाम का एक पक्षी रहा करता था जो 500 वर्ष जीवित रहने के बाद चिता में जल कर भस्म हो जाता था और फिर उस भस्म से एक युवा फीनिक्स जन्म लेता था। प्राचीन मिस्र के पौराणिक कथा में फीनिक्स सूर्य का प्रतिनिधित्व करता हैं जो रात में मर जाता था और सुबह पुनः जन्म लेता था। प्रारंभिक ईसाई परंपरा के अनुसार फीनिक्स अमरत्व तथा पुनर्जीवन दोनो का प्रतीक हैं। प्राचीन धारणाओं के अनुसार फीनिक्स पुनर्जीवन और नवनीकरण जैसे अध्यात्मिक विषयों का निचोड़ है और खासकर जिस प्रकार से अग्नि पर जोर दिया गया है, जिसे अलंकारिक भाषा में जीवन की चिंगारी कहते है और जो व्यवहारिक रुप से अस्तित्व के लिए जरुरी है।
मई 1978, में एयर मार्शल डी सूबिया, पीवीएसएम वीर चक्र, वायु अफसर कमांडिंग-इन-चीफ अनुरक्षण कमान ने सारे बेस मरम्मत डिपो को एक जैसा यूनिट क्रेस्ट और मोटो देने के लिए इस का उपयोग किया। यर्थात में यह क्रेस्ट पौराणिक पक्षी फीनिक्स को अपने सिर के चारों तरफ गियर व्हील के साथ दर्शाया है जो कि अग्नि से उभर रहा हैं। क्रेस्ट पर लिखा हुआ आदर्श वाक्य “कायाकल्पः” शरीर के पुनयौवन को दर्शाता है तथा बेस मरम्मत डिपो की भूमिका का व्याख्यान करता है जहाँ पर एयरक्राफ्ट के इंजन तथा अन्य तकनीकी कलपुर्जो को एक निश्चित अवधि के बाद पूरे तरीके से मरम्मत कर एक नया जीवन प्रदान किया जाता है। 1 बेस मरम्मत डिपो है जिसे बेस मरम्मत डिपो की जननी कहा जाता है, जिसे अपना आदर्श वाक्य “सहायता सेवा” को बनाए रखने की इजाजत दी गई हैं।
अनुरक्षण तथा परिभारिकी प्रतिष्ठान/संस्था
अनुरक्षण कमान के सभी तकनीकी क्रियाकलापो के उत्तरदायित्वो का वहन बेस मरम्मत डिपो, उपस्कर डिपो, एयर स्टोरेज पार्क, वायु सेना के लिए संपर्क स्थापना वायु सेना संपर्क सेल तथा अनेक छोटे-छोटे यूनिटों आदि द्वारा किया जाता हैं। सभी प्रकार के एयरक्राफ्ट, एरोइंजिन, मिसाईल, एडीजीईएस रडार, संचार एवं वातानुकूलित उपकरणों, जीडब्लू उपकरण, भू-रडार, रेडियो तथा मार्गनिर्देशन यंत्र एयर बोर्न एवियोनिक्स, ई डब्लू उपकरण आदि की मरम्मत, रखरखाव तथा उत्पादन समर्थन आदि के लिए अनुरक्षण कमान का उत्तरदायी हैं, इसके अतिरिक्त एच ए एल तथा बी इ एल में चल रहे उत्पादन तथा उत्पादन सम्बन्धित गतिविधियों की निगरानी संपर्क स्थापना तथा संपर्क सेल के द्वारा किया जाता है।
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान पूर्वोत्तर में वर्ष 1940 में वायु ऑपरेशन की मदद के लिए चकेरी, कानपुर में नंबर 322 अनुरक्षण यूनिट की स्थापना 21 टाटा हैंगर में की गई थी। इस यूनिट का काम लिब्रेटर, लकेस्टर, हरीकेन, टेम्पेस्ट, तथा डकोटा जैसे फाईटर एयरक्राफ्ट को चकेरी से 25 कि.मी दूर अरमापूर एस्टेट में एयरोइंजिन को रखने की व्यवस्था की गई । अगस्त 1945 में जब जापान ने आत्मसमर्पण किया तथा युद्ध समाप्त हो गया तो नंबर 322 मेन्टेनेन्स यूनिट का विघटन कर दिया गया और राँयल एयर फोर्स स्टेशन कानपुर औपचारिक रूप से अस्तित्व में आया। 15 अगस्त 1947 स्वतंत्रता दिवस के दिन विंग कमांडर रंजन दत्ता डी एफ सी ने वायु सेना स्टेशन कानपुर की कमान राँयल एयर फोर्स से संभाली। इसी दिन नंबर 1 एयरक्राफ्ट मरम्मत डिपो तथा नं. 10 एयरक्राफ्ट स्टोरेज यूनिट की स्थापना चकेरी कानपुर में हुई। ग्रुप कैप्टन डी ए आर नन्दा इन दोनो यूनिट के प्रथम कमान अफसर थे। इन दोनों यूनिटों को मिलाने के पश्चात 09 अगस्त 1948 को नंबर 1 बेस मरम्मत डिपो की स्थापना हुई और ग्रुप कैप्टन हरजिन्दर सिंह एमबीई, वीएसएम इस यूनिट के पहले कमान अफसर बने। भारत का पहला जेट एयरक्राफ्ट वँम्पाईअर को इसी साल भारतीय वायु सेना में सम्मिलित किया गया तथा इसी साल इसकी सर्विसिंग भी की गई। यहाँ पर फ्लाइंग अफसर गियान सिंह सबसे अधिक याद किये जाते है जो बराबर इस डिपो के हैंगर नं. 6 में वँम्पाईअर की मरम्मत के लिए आते थे। 1 बेस मरम्मत डिपो के पास स्पीटपायर, प्रेन्टीस, औस्टर, हावार्ड औटर, बेल हेलिकॉप्टर, वँम्पाईअर, तूफानी, मिस्टियर, हन्टर, एव्रो और एन- 32 जैसे ट्रान्सपोर्ट तथा फाइटर, दोनो तरह के एयरक्राफ्ट की मरम्मत की जाती रही है।
ट्रान्सपोर्ट एयरक्राफ्ट और हेलिकॉप्टर के ओवरहाल की जरूरत को पूर्ण करने के लिए 20 अगस्त 1962 को नंबर 3 बेस मरम्मत डिपो की स्थापना की गयी। यूनिट के प्रथम कमान अफसर ग्रुप कैप्टन टी एम जे क्रिपलानी ने रूस की मदद से स्थापित जहाजों के ओवरहाल की सुविधाओ की स्थापना की तथा यहाँ पर आई एल-14 मालवाहक जहाज तथा एम आई-4 हेलिकॉप्टर की मरम्मत का काम शुरु हुआ। साथ में नये हेलिकॉप्टर मिंग-8 और मिंग-17 का ओवरहाल किया जाने लगा । असलियत में यह डिपो रूस में बने हेलिकॉप्टरो के मरम्मत का बेस बन गया है और इस डिपो ने एम आई-25 के सक्रिय रहने की अवधि को बढाने, एम आई-26 हेलिकॉप्टर की मरम्मत करने तथा एम आई-35 हेलिकॉप्टर के अपग्रेड जैसे महत्वपूर्ण काम को किया।
समय के साथ वेपन प्लेटफॉर्म के शामिल होने पर भारतीय वायुसेना ने अपने महत्वपूर्ण यंत्रों तथा इससे संबंधित सिस्टम तथा सब सिस्टम के रखरखाव तथा मरम्मत के क्षेत्र में अपनी क्षमताओं को बढाने की आवश्यकता को महसूस किया। इसके चलते बहुत सारे एयरक्राफ्ट बेस मरम्मत डिपो (1 बेस मरम्मत डिपो, 3 बेस मरम्मत डिपो, 5 बेस मरम्मत डिपो, 11 बेस मरम्मत डिपो) इंजीन बेस मरम्मत डिपो (3 बेस मरम्मत डिपो, 4 बेस मरम्मत डिपो) तथा सिस्टम बेस मरम्मत डिपो (7 बेस मरम्मत डिपो, 8 बेस मरम्मत डिपो, 9 बेस मरम्मत डिपो, 12 बेस मरम्मत डिपो, 13 बेस मरम्मत डिपो, 14 बेस मरम्मत डिपो, 15 बेस मरम्मत डिपो, 16 बेस मरम्मत डिपो) की स्थापना पूरे भारत में की गयी।
1939 में इलाहबाद में 302 अनुरक्षण यूनिट की स्थापना हुई । 1942 के दौरान इसे यूनिवर्सल डिपो में परिवर्तित कर दिया गया जो राँयल एयर फोर्स के अनुसार एशिया में इस तरह का पहला डिपो था। विश्व युद्ध के दौरान मित्र राष्ट्रों के वायु ऑपरेशन हेतु 1948 में इस डिपो का नाम बदलकर 4 उपस्कर डिपो किया गया और फिर 1966 में इसे बदलकर 24 उपस्कर डिपो कर दिया गया और यहा पर अब जगुआर, एव्रो डोनियर जहाज तथा चेतक/चीता है और चीतल हेलीकॉप्टर, ए एल एच तथा पी ए के अतिरिक्त कलपुर्जे रखे जाते है।
उसी प्रकार 23 उपस्कर डिपो, आवडी का निर्माण भी दूसरे विश्व युद्ध के समय हुआ। रॉयल भारतीय एयर फोर्स के अधीन 337 अनुऱक्षण यूनिट के नाम से इसकी स्थापना दिसम्बर 1944 में हुई। यह दक्षिण पूर्वी एशिया के लिए सप्लाई प्वाइंट तथा स्टोरेज डिपो के रुप में स्थापित हुआ। इस यूनिट का नाम दो बार बदला गया। 1947 में इसे नं. 3 उपस्कर डिपो का नाम दिया गया तथा 1966 में 23 उपस्कर डिपो के नाम से स्थापित हुआ। वायु सेना के विस्तार के साथ-साथ बहुत सारे उपस्कर डिपो की भी स्थापना हुई। (देवलाली में 25 उपस्कर डिपो, बेंगलुरू में 26 उपस्कर डिपो, पालम में 27 उपस्कर डिपो, आमला में 28 उपस्कर डिपो, तथा कानपुर में 29 उपस्कर डिपो)। इसके बाद जहाजी बेड़ा तथा इसके सिस्टम की सहायता के लिए छोटे-छोटे डिपो जैसे - 41 उपस्कर डिपो, 42 उपस्कर डिपो, 43 उपस्कर डिपो, 44 उपस्कर डिपो, 45 उपस्कर डिपो तथा 49 उपस्कर डिपो की स्थापना हुई। उसी प्रकार भारतीय वायु सेना तथा हिन्दुस्तान एरोनॉटिकल लिमिटेड के बीच अनुपूरक के रूप में वायु सेना संपर्क की स्थापना हुई।
सामग्री और कार्मिकों को क्रम अनुसार सुचारू रूप से संचलन करने के लिए 31 संचलन कन्ट्रोल यूनिट को सन् 1939 में पश्चिम पाकिस्तान मीरपुर में वायु संचलन अनुभाग के नाम से स्थापित किया गया। कुछ साल बाद इस युनिट का नाम बदलकर पैसेंजर और माल प्रेषण अनुभाग रखा गया जो 3 विंग के अधीन रहा। बाद में इसे 11 मई 1967 को मूवमेंट कंट्रोल यूनिट में बदल दिया गया। 31 एम सी यू जरूरत लोगों को सहायता और आपदा के समय राहत कार्यों में सामान पहुँचाने का काम करती है। इस यूनिट ने पिछले पांच साल में 18 राहत कार्यों में भाग लिया। देश और विदेश में जरूरतमंद लोगों को राहत सामग्री पहुँचाने का कार्य किया है। इस यूनिट को 17 जनवरी 2019 को सेन्ट्रल बोर्ड, सीमा शुल्क बोर्ड और केन्द्रीय अप्रत्यक्ष कर द्वारा टाईअर्-III का दर्जा दिया गया है, जिसके चलते इस यूनिट को आयातकी को स्थगित भुगतान की सुविधा प्राप्त होती है। यह यूनिट न केवल पहली रक्षा यूनिट है बल्की इस सुविधा को हासिल करने वाली प्रथम भारतीय संस्था भी बन गई।
32 एम सी यू की स्थापना वर्ष 1948 में एयर फ्रंट एंड पैसेजंर यूनिट के रूप में हुई थी। इसके बाद यूनिट को 32 एम सी यू वायु सेना का नाम दिया गया। अभी यह यूनिट मुंबई के छत्रपती शिवाजी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल-1 पर स्थित है। यह यूनिट को (ए ई ओ) टाईअर्-II का प्रमाण पत्र प्राप्त है। 33 एम सी यू की स्थापना 4 अक्टूबर 1982 को वायु सेना स्टेशन गुवाहाटी में हुई थी जो कि पूर्वी क्षेत्र के लिए सैनिक पैसेंजर और फ्रेट हैडलिंग एजेंसी के रूप में कार्य करती है। यह यूनिट पूर्वोत्तर के लिए एक प्रवेश द्वार के रूप में कार्य कर रही है और भारतीय वायु सेना के लिए एक महत्वपूर्ण यातायात का केन्द्र है।
एरोनोट्रिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (ए ई एस आई) नागपुर
ए ई एस आई की नींव 17 नवम्बर 1948 को रखी गयी थी। इसका मुख्य लक्ष्य विमान शास्त्र विज्ञान और एरोस्पेस तकनीकियों का मूल्याकंन करना था। पंडित जवाहरलाल नेहरू जो कि भारत के प्रधान मंत्री एवं सोसाइटी के संरक्षक थे। इस संस्था का निरंतर विकास हो रहा है एवंम पुरे देशभर में इसकी 16 शाखाएं है। एयर मार्शल आर के एस शेरा अति विशिष्ट सेवा मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल, वायु अफसर कमांडिग-इन-चीफ, अनुरक्षण कमान मुख्यालय, ए ई एस आई के उप सभापति है।
ए ई एस आई, की स्थापना नागपुर में 21 अक्टूबर 2003 को अनुरक्षण कमान मुख्यालय, नागपुर में हुई। एयर वाईस मार्शल एन आर चिटणीस वि से मे, अनुरक्षण कमान मुख्यालय, नागपुर शाखा के वर्तमान में चेयरमैन है। ए ई एस आई, नागपुर में उद्योग, अनुसंधान संस्थाओ एवं बुद्धिजीवियों के बीच एक प्लेटफॉर्म प्रदान करता है।
इसके अलावा नवम्बर 2018 को संस्थान के सदस्य, सोसाइटी एवं अन्य संस्थाओ ने मिलकर एक कार्यक्रम का आयोजन किया जिसके अंतर्गत स्कूल/कॉलेजों के छात्रों ने विभिन्न प्रतियोगिताओं जैसे निबंध, पोस्टर बनाना, प्रश्नउत्तरी इत्यादी में भाग लिया। इस दौरान औरेंज सिटी साईन्स मेला का भी आयोजन किया गया था। इसके अलावा रमन विज्ञान केन्द्र के साथ मिलकर इस मेले में एरोमॉडलिंग, कार्यरत विज्ञान मॉडल का प्रदर्शन भी किया गया था। इस प्रकार के मेले के आयोजन से युवाओं में उत्साह देखा गया। मार्च 19 में प्रियदर्शनी इंजीनियरिंग कॉलेज में “वैमानिक” का वार्षिक इवैन्ट आयोजित किया गया एवं इस इवैन्ट का मुख्य उदेश्य युवाओं में वैमानिक के क्षेत्र में सृर्जनात्मक योग्यता को बढावा देना था। इस दौरान सेल्फ रिलायंस इन मिलिट्री एंड सिविल एविएशन मेन्टेनेंस पर परिचर्चा का आयोजन भी किया गया।
स्वदेशीकरण
अनुरक्षण कमान मुख्यालय ने स्वदेशीकरण एवं आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारतीय वायु सेना ने निजी उद्योगों के साथ मिलकर विभिन्न प्रकार के कलपुर्जों का विकास किया है। जिसके फलस्वरूप कलपुर्जों की मात्रा में वृद्धी हुई है एवं स्वदेशीकरण को बढ़ावा मिला है। भारतीय वायु सेना द्वारा सेमिनार और प्रदर्शनी आयोजित करने से हमारे विक्रेताओं को बढ़ावा एवंम निजी उद्योग से अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। इसके परिणाम स्वरूप स्वदेशीकरण एक मील का पत्थर साबित हुआ है।
स्वदेशीकरण सेमिनार की सूची/प्रदर्शनी
निजी उद्योग के माध्यम से स्वदेशीकरण के दिशा में बड़े पैमाने पर उपलब्धियॉ मिली जैसे टी वी सी ट्रोली एस यू – 30 एक के आई, फाइबर ओपट्रिक गाईरो यूनिट ऑफ पैचोरा प्रणाली, मिग-27 के लिए यूनिवर्सल एफडीएएएस एवं ए एन-32, एस यू-30 एम के आई के लिए पायलट रैसक्यू लैडर, मिंग-29 के लिए कैनँपी सीलिंग होस, जगुआर एयरक्राफ्ट के लिए जी पी एस ऐंटिना इत्यादि।
नोडल टेकनालॉजी सेन्टर
लक्ष्य को विस्तार करने हेतु तथा भारतीय वैमानिकी उद्योग तथा रिसर्च और डवलपमेंट संस्थाओं की क्षमता बढ़ाने के लिए सारे बेस मरम्मत डिपो तथा 28 उपस्कर डिपो में नोडल टेकनालॉजी सेन्टर की स्थापना की गयी। इन केन्द्रों का मुख्य काम स्वदेशीकरण के लिए रिसर्च और डवलपमेंट प्रोजेक्ट को आरंभ करना, व्यवस्थित ढंग से प्रबंधन करना, जो चीज प्रचलन में न ही उसे कम करना तथा औजार/यंत्र की आपरेशनल क्षमता को बढ़ाना। ये नोडल टेक्नालॉजी सेन्टर तकनीकी रूप से जटिल प्रोजेक्टस को चलाता है। कुछ बड़ी योजनाएं जिसकी एन टी सी ने पूरा किया है।
मेक इन इंडिया कैम्पेन
नियोजित ढंग से विमानन के क्षेत्र में आयात के सामान को कम कर आत्मनिर्भता को पूरा करने के लिए अनुरक्षण कमान मुख्यालय तथा बेस मरम्मत डिपो द्वारा ठोस प्रयास किये जा रहे है और इसके लिए नये-नये तरीके अपनाये जा रहे है। प्रत्येक तिमाही में हरेक बेस मरम्मत डिपो में मेक इन इन्डिया की जागरूकता फैलाने के लिए स्वदेशीकरण सप्ताह मनाया जाता है जिसमें रिसर्च और डेवलपमेंट संस्थाएँ, इस क्षेत्र के वैज्ञानिक तथा विक्रेता आते है। इस तरह के सम्मेलन के दौरान हुए आपसी वार्तालाप ने स्वदेशीकरण को काफी मदद पहुँचायी है।
तकनीकी बढ़ावा तथा भारतीय वायु सेना के लिए उसकी उपयोगिता को आँकने के लिए तथा उसे समझने के लिए लगातार प्रयास किये जा रहे है। राष्ट्रीय स्तर पर हुए सेमिनारो में विक्रेताओ से मुलाकात के कारण विभिन्न तकनीको को भारतीय वायु सेना में समायोजित करने में मदद मिली है। संपर्क विवरण
भा. वा. से. में कार्गौ प्रबन्धन
प्राधिकार अर्थशास्त्रीय परिचालक स्टेटस का पुरस्कार
भारतीय वायु सेना अपने जहाज तथा उससे संबंधित प्रणाली को प्रभावशाली ढंग से तैयार रखने के लिए आवश्यक कलपूर्जों के लिए विदेशी आपूर्तीकर्ता पर निर्भर है। आयातित वस्तुओं का समय पर तेजी से सीमा शुल्क कार्यालय से निकासी करना ही मूवमेंट कन्ट्रोल यूनिट का मुख्य (उद्देश्य) है। सीमा शुल्क कार्यालय में पहले के 72 घंटे के लिए निर्धारित फ्री विन्डो अवधि को घटाकर 48 घंटा कर दिया गया तथा 01 अप्रैल 16 से रक्षा सेवा के लिए आयातित सामान पर आयात शुल्क की छूट को वापस ले लिया गया जिसके चलते “मूवमेंट कन्ट्रोल यूनिट” को ब्याज / दंड / विलम्ब शुल्क के लिए काफी राशि का भुगतान करना पडता था। इस उलझन को दूर करने के लिए बहुत सारे विकल्पों को ढ़ढंते हुए यह पाया गया कि सीमा शुल्क विभाग द्वारा प्राधिकार अर्थशास्त्रीय परिचालक के तहत दी जाने वाली सुविधाओं का लाभ उठाना एक प्रशंसनीय समाधान पाया गया। हलाकि इस प्रक्रिया में सीमा शुल्क अधिकारियों द्वारा खास दर्जा देने से पहले बहुत ही सख्त गुणवत्ता नियंत्रण और प्रक्रियात्मक जाँच की जाती है।
सीमा-शुल्क अधिकारियों के निरंतर संपर्क बनाये रखने के कारण 07 नवबंर 17 को मूवमेंट कन्ट्रोल यूनिट (आवागमन नियंत्रण यूनिट) को टाईअर्- II का खास दर्जा प्राप्त हुआ जिसके चलते यूनिट को सामान ले जाने और लाने में प्राथमिकता मिली तथा 15 दिनों तक विलंब भुगतान करने की छूट दी गई। इस तरह का खास दर्जा प्राप्त करने वाली यह भारत का चौथी तथा ऱक्षा विभाग की पहला यूनिट है। तदापरांत मुबंई में स्थित एम सी यू और बेंगलूरू में स्थित उपस्कर डिपो ने भी ए ई ओ टाईअर्-II का दर्जा प्राप्त किया है।
हालांकि कुछ ऐसे भी अवसर आये जब कुछ आयातित सामान की गहन जाँच सीमा शुल्क अधिकारियों द्वारा की गई जिसके चलते ब्याज / दंड / विलम्ब शुल्क देना पड़ा। उपरोक्त समस्या को दूर करने के लिए अधिकृत आर्थिक आपरेटर के दर्जो को और आगे बढ़ाने, रक्षा सामान की गहन जाँच से छूट तथा 30 दिनों तक विलम्ब शुल्क न देने की जरूरत महसूस हुई। उपस्कर तथा कार्गो संबंधित दस्तावेजों के गहन जाँच के बाद दिल्ली स्थित एम सी यू को 17 जनवरी 2019 को टाईअर्-III का दर्जा प्राप्त हुआ। इस तरह का दर्जा प्राप्त करने वाली एक मात्र अन्य संस्था का नाम एल जी इलेक्ट्रानिकी है जो कि बहुराष्ट्रीय कंपनी है।
इस प्रकार एम सी यू अब आयातित सामान का सीमा शुल्क निकासी जल्दी करने में सक्षम रहेगा जिससे भारतीय वायु सेना की तैयारी को सुनिश्चित करने का मूलभूत उद्देश्य पूरा हो सकें।
फिटनैस फस्ट मिशन ऑलवेज. कार्यक्रम
30 अक्टूबर 18 को वार्षिक अनुरक्षण कमांडर सम्मेलन के दौरान एयर मार्शल हेमन्त शर्मा, एवीएसएम, वीएसएम, वायु अफसर कमांडिंग-इन-चीफ, अनुरक्षण कमान, भारतीय वायु सेना में “फिटनैस फस्ट मिशन ऑलवेज” कार्यक्रम को प्रारंभ किया। इस कार्यक्रम से लोगो के स्वास्थ में दूरगामी सकारात्मक परिणाम प्राप्त किए जा रहे है। इसके तहत जीवन शैली बीमारियों को कम किया जा सकेगा। इस कार्यक्रम के लिए एक विशेष “लोगो” को दर्शाया गया है।
इस “लोगो” मे जीवन शैली संबंधित बीमारियों से होने वाली बीमारी को चित्रित किया है। इस तरह की शैली से उत्पन्न बीमारी, मधुमेह के लिए दुनिया को एक मधुमेह दराजधानी भी बनाता है। जीवन शैली से संबंधित बीमारी ने हमें व्हील ऑफ चेयर की तरह घेर लिया है। इस चिन्ह में जो तीन लोगो को दर्शाया गया है वह असल में तीन जीवन शैली बीमारियों के तरफ संकेत कर रहा है उच्च रक्त चाप, मधुमेह तथा मोटापा और ये जीवन भर हमारा पीछा करती रहेगी अब यह हमारे ऊपर हैं कि हम इन बाधाओं से ऊपर उठकर बीमारियों से छुटकारा पाये तथा भविष्य में और तन्दुरूस्त रहे। स्टार के बीच में एक “लोगो” को दर्शाया गया है जो अनुरक्षण कमान वायु सैनिकों और उनके परिवारों के बीच बेहतर स्वास्थ को सुनिश्चित करने के लिए दर्शाता है।
प्रचार कार्यक्रम
अनुरक्षण कमान मुख्यालय के तरफ से हर साल स्टेशनों / यूनिटों में प्रचार कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है जिसमें स्कूल /कॉलेजो /शिक्षा संस्थानों को कैरियर से संबंधित जानकारी प्रदान की जाती है। कैरियर को आप किस प्रकार चुनाव कर सकते है उसके लिए विस्तार पूर्वक में बताया जाता है। 2018 के अवधि में अधिकारियों द्वारा 22 सीनियर सैकंडरी स्कूल और इंजीनियरिंग कॉलेजों को दौरा किया गया और कैरियर मेलों में भाग लिया अनुरक्षण कमान मुख्यालय ने उपहार के तौर पर रमन विज्ञान केन्द्र को एच पी टी-32 और टी वी-2 एव्रो इंजन प्रदान किया और एच पी टी-32 एयरक्राफ्ट को प्रियदर्शनी इंजीनियरिंग कॉलेज नागपुर को भेंट किया गया।
अनुरक्षण कमान में छात्रवृत्ति योजना (एम सी एस एस)
अनुरक्षण कमान में छात्रवृत्ति योजना का मुख्य उद्देश्य वायुसैनिकों के योग्य बच्चों को छात्रवृत्ति प्रदान करना है। छात्रवृत्ति लेने का समय सीमा है। वायुसैनिक को अनुऱक्षण कमान के अधीनस्थ यूनिटों में 30 सितम्बर तक पोस्टिंग में उपस्थित रहना होगा। ये छात्रवृत्ति स्कूल, तकनीकी चिकित्सा और व्यावसायिक शिक्षा के लिए लागू है। इसके अलावा ये छात्रवृत्ति 2018 से स्पेशल चाइल्ड को भी दिया जाने लगा है। ये छात्रवृत्ति मैरिट में आए हुए छात्रों को ही प्रदान की जाती है।
वायु सेना स्कूल
01 जनवरी 2019 तक अनुरक्षण कमान मुख्यालय के अधीनस्थ 16 वायु सेना स्कूल हैं। शिक्षा प्रणाली और सी बी एस ई पाठ्यक्रम में बदलावों के चलते वायु सेना स्कूलों के शिक्षकों के लिए हर साल विभिन्न कार्यशालाएं आयोजित की जाती है।
एफकैंट और स्टार
छात्रों और अधिकारियों के चुनाव के लिए एयर फोर्स कॉमन एड़मिशन टेस्ट (एफ कैट) और एयरमैन भर्ती के लिए निर्धारित टेस्ट के लिए ई-परीक्षा का आयोजन साल में दो बार किया जाता है। (फरवरी / अगस्त एवं मार्च / सितम्बर) में।
खेल सम्बधी क्रिया-कलाप
अनुरक्षण कमान ने वर्ष 2018-19 में खेल-कूद से संबंधित 20 आयोजनों में भाग लिया और वायु सेना चैम्पियनशिप में पाचंवा स्थान हासिल किया है। अनुरक्षण कमान की टीम ने निशाने बाजी एवं शतरंज खेल में प्रथम स्थान, लॉन टेनिस, बैडमिंटन एवं बॉक्सिंग में दूसरा स्थान, कुश्ती में तीसरा स्थान प्राप्त किया है। इसके अलावा साइकिल पोलो फेडरेशन कप वर्ष 2018-19 में वायु सेना स्टेशन, चंडीगढ में 04-06 मार्च 2019 से शुरू करने की योजना है।
मार्शल ऑफ इंडियन एयर फोर्स अर्जन सिंह अंतराष्ट्रीय हॉकी टूर्नामेंट का आयोजन चंडीगढ में 15 से 22 अप्रैल 19 तक किया गया है। वर्ष 2019-20 में वायु सेना स्टेशन
चंडीगढ में खेल उत्सव योजना के अन्तर्गत 06 प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा। जो कि बास्केट बॉल, हैंडबाल, हॉकी, स्कवैश और वेट लिफ्टिंग है।
साहसिक गतिविधियॉः वर्ष 2018-19 के दौरान की जाने वाली प्रमुख गतिविधियॉ नीचे दर्शायी गई है।