अब भारतीय वायु सेना का पूरा जोर अत्यंत अल्प अवधि में इसे 15 स्क्वॉड्रन वाले बल से बढ़ाकर 33 स्क्वॉड्रन वाला बल बनाने पर केन्द्रित एक विस्तार कार्यक्रम को लागू करने पर था, जो कि उपस्करों के क्षेत्र में तेजी से किए जा रहे परिवर्तनों के साथ करना एक कठिन कार्य था। नं. 15, 17, 20, 24, 27 और 45 जैसी कई नई स्क्वॉड्रन अंतरिम उपस्कर के तौर पर वैम्पायर एफबी एमके 52 वायुयानों के साथ गठित की जा रही थी। कैनबरा बी(I) एमके 58 वायुयानों से दो अतिरिक्त स्क्वॉड्रनों नं. 16 और 35 को 1959 तक लैस कर दिया गया। नं. 106 स्क्वॉड्रन को कैनबरा पीआर एमके 57 वायुयानों से लैस किया गया था और 1961 के अंत तक छह स्क्वाड्रनों (नं. 7, 14, 17, 20, 27, 37) को हंटर वायुयानों से लैस किया गया। विकास का यह क्रम केवल समाघात संबंधी घटकों तक सीमित नहीं था इसके साथ ही भारतीय वायु सेना के परिवहन बल के आकार में भी में वृद्धि हुई, अब इसमें छह स्क्वाड्रनें हो चुकी थी जिनमें से तीन सी-47 वायुयानों (नं. 11, 43 और 49), दो सी-119जी वायुयानों (नं. 12 और 19) और एक डीएचसी-3 ऑटर (नं. 41) से लैस थी।