सुनामी राहत कार्य 2004 में भारतीय वायु सेना की भूमिका

 

ऑपरेशन सी वेव, ऑपरेशन रेनबो, ऑपरेशन कैस्टर

26 दिसंबर, वर्ष के अंतिम रविवार को एक न्यूज चैनल में न्यूज दिखाई गई ''चेन्नई में हल्का भूकंप, किसी भी प्रकार की क्षति की सूचना नहीं'' । बाद की घटनाओं के प्रकट होने से यह घटना सदी की सबसे कम आकलन की गई घटना साबित हुई।

26 दिसंबर 2004 का 00:58:53 यू टी सी (07:58:53 स्थानीय समय) पर समुद्र में भूकंप आया। इस भूकंप का उद्‌गम स्थल सिमेल्यू द्वीप के ठीक उत्तर में स्थित हिंद महासागर, जो कि उत्तरी सुमात्रा इंडोनेशिया के पश्चिमी समुद्र से दूर था। इस भूकंप से एक ऐसे सुनामी की उत्पत्ति हुई जो आधुनिक इतिहास में एक विध्वंसकारी आपदाओं की सूची में से एक थी। इस सुनामी में 18 मी (55.8 फीट) ऊंची लहरें (जल तरंगे) उठी और इसने इंडोनेशिया, श्रीलंका, थाइलैंड, दक्षिण भारत और तंजानिया तक कि तटों को तहस-नहस कर दिया था। इंडोनेशिया, श्रीलंका, थाइलैंड, भारत और मालद्वीप में अधिकांश मृत्यु रिकॉर्ड की गई।

भूकंप की तीव्रता के 6.8 से 8.5 के स्तर की आरंभिक रिपोर्ट में 8.9 और 9.0 की तीव्रता की वृद्धि हुई। नए अध्ययन में इसकी तीव्रता का अनुमान 9.3 लगाया गया, यह वर्ष 1964 में अलास्का से दूर गुडफ्राइडे के दिन आए 9.2 की तीव्रता के भूकंप से भी बड़े स्तर का भूकंप था।

भूकंप का अधिकेंद्र सुमात्रा के पश्चिम में 160 किमी (100 मील) दूर मीन (मध्य) समुद्र तल से नीचे 30 किमी (18.6 मील) की गहराई में था। (आरंभिक रिपोर्ट 10 किमी की थी) यह पश्चिम अंतिम छोर का अंतिम दूरतम 'रिंग ऑफ फायर' है यह ऐसी भूकंप बेल्ट है जिसमें विश्व के विशालतम 81 प्रतिशत भूकंप आते हैं। साथ ही भूकंप (सुनामी परिणाम के अतिरिक्त) को बांग्लादेश, भारत, मलेशिया, म्यांमार, थाइलैंड, सिंगापुर और मालदीव में महसूस किया गया।

एक अनुमानित 1200 किमी (750 मील) की फॉल्टलाइन सबडक्शन ज़ोन के साथ लगभग 15 मी (50 फुट) स्लिप हो गई जहां जहां इण्डियन प्लेट बर्मा प्लेट के नीचे डाइव होती है। फटन प्लेट उत्तर पश्चिम दिशा की ओर लगभग 2 किमी/से (1.2 मील/सें.) की गति से आगे बढ़ी, इसके उत्तर की और अंडमान निकोबार द्वीप समूह की ओर उत्तर दिशा में मुडने से पूर्व, यह अछेह के तट से दूर आरंभ हुई, इंडियन प्लेट्‌स बर्मा प्लेट से सूंडा टे्रंच से मिलती है जहां यह बर्मा प्लेट को सबडक्ट करती है। जो प्लेट निकोबार द्वीप अंडमान द्वीप और उत्तरी सुमात्रा को ले जाती है। प्लेटों के बीच साइडवेज गतिशीलता होने से अनुमान लगाया गया कि समुद्र तल सैकड़ों मीटर ऊपर उठ गया और सुनामी लहरें उत्पन्न हुई। लहरों का उद्‌गम वह प्वांइट स्रोत नहीं था जैसा कि कुछ उदाहरणों में गलती से दर्शाया गया था, परंतु दरार की संपूर्ण 1200 किमी (750 मील) लंबाई के साथ बाहर फैल गई थीं। ये लहरें बड़े भोगौलिक क्षेत्र पर फैल गयी। ये लहरें मैक्सिको और चिली तक पहुंच गयी।

इसके फलस्वरूप बडे स्तर पर मृत्यु और विनाश लीला हुई, अपने देश में बचाव और राहत कार्य करने के अतिरिक्त, भारत ने तत्परता से इंडोनेशिया, मालदीव और श्रीलंका को सहायता पहुंचायी। आपदा के 12 घंटों के अंदर ही भारत द्वारा श्रीलंका को पहली राहत सामग्री पहुंचाई गई। पड़ोसी देशों के लिए यह ऑपरेशन निकटवर्ती क्षेत्रों में पूर्ण रूप से 03 दिन तक जारी रहा।

सुनामी ने संपूर्ण निकोबार द्वीप समूह के साथ-साथ 2260 किमी. लंबी भारतीय समुद्री तटरेखा को प्रभावित किया। मुख्य भूमि पर ज्वारीय लहरें 3 से 10 मीटर तक ऊंची थी, ऊपर उठी और ये लहरें 300 मी. से 3 किमी. तक घुस गईं।

शांति काल में भारतीय वायु सेना की एक भूमिका प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में सिविल प्रशासन की सहायता प्रदान करना रही है। कई वर्षों से भारतीय वायु सेना को ऐसी विकट परिस्थितियों से निपटने का एक लंबा अनुभव रहा है भले ही वह आपदा कुछ वर्ष पूर्व मध्य भारत में लातूर में आए भूकंप और पश्चिमी भारत में गुजरात में आए भूकंप के दौरान आयी हो। भारतीय वायु सेना द्वारा हवाई सहायता मुहैया कराई गई।

प्रथम सूचना रिपोर्ट

भारत के पूर्वी तट पर हल्के कंपन महसूस होने के पश्चात पहला यह संकेत कि सब कुछ ठीक नहीं है चेन्नई स्थित वायु सेना बेस में संदेश मिला। कार्निक में स्थित डी ओ-228 ने 0730 बजे अपना एच एफ स्विच ऑन कर समुद्री नियंत्रण केंद्र चेन्नई को मे डे संदेश भेजा, यह संदेश निम्नानुसार था।

''मे डे, मे डे, मे डे, चेन्नई, चेन्नई, चेन्नई विक्टर जूलियट गोल्फ कार निकोबार ग्राउंड से। कारनिकोबार में भीषण भूकंप आया है और ज्वारीय लहरों से द्वीप जलमग्न हो रहा है, द्वीप डूब रहा है तत्काल बचाव और राहत का अनुरोध है''.

तत्काल प्रतिक्रिया

सशस्त्र सेनाओं ने राहत, बचाव, एवं निकासी के लिए ऑपरेशन ''सी वेव'' आरंभ किया। इसे एकीकृत रक्षा स्टाफ (आई डी एस) द्वारा कॉआर्डिनेट किया गया। 26 दिसंबर 2004 को 0815 बजे आपदा की प्रथम सूचना प्राप्त होने पर वायु सेना मुख्यालय तुरंत हरकत में आया और कार्यवाही आरंभ की। दिन-रात कार्य करने हेतु वायु सेना मुख्यालय संक्रिया कक्ष में एक आपदा राहत प्रकोष्ठ का गठन किया गया।

दक्षिण वायु कमान मुख्यालय में दो ए एन-32 वायुयानों को तत्काल (तैयार) एलर्ट पर रखा गया। अन्य कमान मुख्यालयों को भी संभाव्य बचाव राहत और हताहत निकासी ऑपरेशनों के लिए अपने वायुयानों को तैयार रखने के भी अनुदेश दिए गए। पहले ए एन-32 वायुयान ने 10 बजे और दूसरे ने 1036 बजे कार्निक के लिए उड़ान भरी साथ ही इन्हें ताम्बरम और पोर्ट ब्लेयर में रिफ्यूलिंग हाल्ट लेना था। दोनों वायुयानों को 1636 बजे कार्निक में लैंड किया गया। इसी दौरान स्थिति का आंखों देखा हाल जानने के लिए पोर्ट ब्लेयर से एक डी ओ-228 लांच किया गया जिसमें ए एफ सी सी ऑन बोर्ड थे।

राहत ऑपरेशन.

कमांड एवं कंट्रोल

राहत कार्यों को समन्वय करने की संपूर्ण जिम्मेदारी एकीकृत रक्षा स्टाफ मुख्यालय को दी गई जिसमें रक्षा मंत्रालय, सेना मुख्यालय, तटरक्षक एम ई ए, एम एच ए, एम ओ सी ए और जहाजरानी मंत्रालय आदि के प्रतिनिधि शामिल थे। विभिन्न राहत जरूरतों को पूरा करने के लिए, राहत कार्यों को करने हेतु संसाधनों के आबंटन के लिए और भावी जरूरतों का निर्धारण करने के लिए प्रतिदिन दो बैठकों का आयोजन किया गया।

अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह

अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के लेफ्टिनेंट गवर्नर के अधीन एक एकीकृत राहत कमान का भी गठन किया गया, सी आई एन सी ए एन इसके वाइस चेयरमैन थे।

एयरलिफ्ट संसाधन. जैसे ही आपदा से हुए विनाश का विस्तार स्पष्ट हुआ, पहले से ही लगाए गए ए एन-32 के अतिरिक्त ए वी आर ओ और डी ओ 228 बेड़े को भी नियोजित किया गया। सामान्य वायु संभारिकी ऑपरेशन में राहत कार्यों के लिए केवल दो आई एल-76 एयरक्राफ्ट उपलब्ध थे। दो आई एल-78 एयरक्राफ्टों को भी डीमॉडिफाइड किया गया और इन्हें राहत ऑपरेशनों में लगाया गया। चार डी ओ 228, चार ए वी आर ओ, 07 आई एल-76, 15 ए एन-32 और 16 हेलिकॉप्टरों ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया।

मुख्य भूमि राहत

तटवर्ती राज्यों के लिए हवाई सहायता. मेनलैंड पर एक विस्तृत एवं प्रभावशाली लैंड ट्रांसपोर्ट कम्यूनिकेशन सिस्टम होने की वजह से राहत कार्यों में वायु सेना का योगदान अपेक्षाकृत सीमित रहा। चूंकि हानि तटवर्ती क्षेत्रों के आस-पास तक सीमित थी साथ ही सपोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर ठीक होने की वजह से वायु सेना प्रयासों की आवश्यकता अपेक्षाकृत कम थी, और राहत कार्यों के लिए भूतल परिवहन का प्रयोग किया गया। तथापि, प्रभावित क्षेत्रों की टोह लेने, हताहत निकासी, बचाव ऑपरेशनों के लिए हवाई सहायता (एयर एफर्ट) प्रयोग में लाई गई और भारी मात्रा में आपूर्ति उतारने के लिए कुछ उड़ानें भरी गईं। इस कार्य के लिए कुल 67 उड़ानों में 96 घंटों की उड़ान भरी गई।

आइलैंड रिलीफ

बहुमूल्य जीवन बचाने और आपदा के पश्चात् होने वाले दुष्परिणामों को कम करने के लिए गति ही राहत कार्यों का सार था। इसलिए मेन लैंड से बड़ी मात्रा में एयरलिफ्ट ऑपरेशन चलाया गया। इसमें शामिल एयरक्राफ्ट हैवी लिफ्ट आई एल-78/आई एल-76, मीडियम लिफ्ट ए एन-32, ए वी आर ओ और डी ओ-228 थे। उपयोग में लाए गए हेलिकॉप्टर एम आई-17, एम आई-8 और चेतक/चीता थे।

द एयर ब्रिज

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, श्रीलंका और मालदीव के लिए शीघ्र ही एक एयर ब्रिज की स्थापना की गई इसके मुख्य केन्द्र दिल्ली, चेन्नई, ताम्बरम और कारनिकोबार/पोर्ट ब्लेयर थे। जबकि एयरलिफ्ट ऑपरेशन पूरे देश भर से चलाए गए। भारी आपूर्तियों को दिल्ली/मुंबई/कलकत्ता/भुवनेश्वर/अहमदाबाद से उठाया गया और आई एल-76/78 एयरक्राफ्टों द्वारा सीधे कारनिकोबार के लिए उड़ानें भरीं गईं। भारतीय वायु सेना बेस कारनिकोबार में जल भर गया और आई एल-76 के ऑपरेशन जारी रहे। 04 जनवरी 05 को रनवे को आई एल-76 ऑपरेशनों के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। इसके पश्चात सिवाय इसके कि जहां संक्रियात्मक रूप से अनिवार्य/अपरिहार्य हो उसे छोड़कर आई एल-76 को केवल सामान्यतया पोर्ट ब्लेयर रनवे पर उतारा गया।

ऑपरेशन 'सी वेव' ' अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लिए एयरलिफ्ट ऑपरेशन

सर्वप्रथम दो ए एन-32 एयरक्राफ्टों ने ताम्बरम में लैंड किया एवं 3.2 टी भार को समायोजित करने के पश्चात इन्होंने वहां से पोर्ट ब्लेयर/कार्निक के लिए उड़ान भरी। संभाव्य संदूषण के चलते कार्निक में रिफ्यूलिंग की सुविधा उपलब्ध नहीं थी तथापि बाद में कार्निक में ईंधन (फ्यूल) को फिट घोषित किया गया। हैदराबाद-ताम्बरम-कार्निक-पोर्ट ब्लेयर-ताम्बरम-हैदराबाद का औसतन राउंड ट्रिप 11 घंटों का था।

पोर्ट ब्लेयर और कार्निक से दक्षिणी द्वीप समूह जैसे कि कैम्पबेल बे, नॉन कावयरी और कैचल आदि में आपूर्ति ए एन हेलिकॉप्टरों/ए एन-32/डी ओ-228 एयरक्राफ्टों द्वारा की गई। ऑपरेशनों के लिए कैम्पबेल बे में लैंडिंग स्ट्रिप उपलब्ध थी।

अतिरिक्त हेलिकॉप्टर । दक्षिणी द्वीप समूह ऑपरेशनों के लिए एयरलिफ्ट संसाधनों की अतिरिक्त आवश्यकता को पूरा करने के लिए 05 अतिरिक्त हेलिकॉप्टरों ने मेनलैंड से कार्निक के लिए उड़ान भरी। चिटगांव-यंगून-डिगलीपुर-पोर्ट ब्लेयर-कार्निक लैंड रूट अपनाया। इनका स्थान एयरक्राफ्टों ने लिया और 02 जनवरी 2005 तक संक्रियात्मक रहे।

ऑपरेशन रेनबो. :- श्रीलंका के लिए एयरलिफ्ट ऑपरेशन

श्रीलंका सरकार के अनुरोध पर राहत कार्यों के लिए छः मध्यम लिफ्ट हेलिकॉप्टरों को श्रीलंका भेजा गया। तीन हेलिकॉप्टरों ने 27 दिसंबर 2004 को और तीन ने 28 दिसंबर 2004 को अपनी पोजीशन ले ली। कतुनायके और मिन्नेरिया बेस में ऑपरेशन के दौरान, इन हेलिकॉप्टरों ने हताहत निकासी, राहत सामग्री का वितरण, मेडिकल टीमों की तैनाती की और खाद्य सामग्री गिराई।

कुल हवाई प्रयासों में, जिसमें एयरक्राफ्ट ले जाना शामिल था, 445 मिशन, 316:10 घंटे और टनेज एवं पैक्स लिफ्टेड क्रमशः 328.845 टन और 882 थी, हेलिकॉप्टर 22 जनवरी 05 को वापस लौट आए।

ऑपरेशन 'कैस्टर' : मालदीव के लिए एयरलिफ्ट ऑपरेशन

मालदीव सरकार द्वारा सहायता मांगने के अनुरोध पर 02 पैराड्रॉप मॉडिफाइड, लंबी रेंज के ए वी आर ओ को 28 दिसंबर 04 को मालदीव भेजा गया। इन एयरक्राफ्टों ने विभिन्न छोटे रनवे पर लैंडिंग कर मालदीव के अंदर अंतरमहाद्वीपीय ऑपरेशन को अंजाम दिया। इनके कार्यों में, हताहत निकासी, वायुयान से खाद्य सामग्री गिराना, जल और सामग्रियों की आपूर्ति और मेडिकल टीमों की तैनाती करना था।

इसमें शामिल कुल हवाई प्रयासों में 155 उड़ानें 198.00 घंटे एवं टनेज और पैसेंजर लिफ्टेड क्रमशः 169.425 टन और 885 थी। एयरक्राफ्ट 31 जनवरी 2005 को वापस आ गया।

हवाई ऑपरेशनों की मुख्य बातें :-

(क) उड़ान समय। आई एल-76 राउंड ट्रिप के लिए औसतन उड़ान समय लगभग 10 घंटे था जबकि ए एन-32 के लिए यह टाइम 10 घंटे से अधिक था।


(ख) लोडिंग/ऑफ लोडिंग टाइम.. ''ऑन ग्राउंड टाइम'' में लोडिंग के लिए औसतन 6 घंटे एवं ऑफ लोडिंग के लिए 3.4 घंटे था।

(ग) रिफ्यूलिंग बाधाएं. .संभाव्य संदूषण के चलते आरंभ में कार्निक में कोई ईंधन (फ्यूल) उपलब्ध नहीं थी। ए एन-32 को पोर्ट ब्लेयर में और अन्य एयरक्राफ्टों को चेन्नई से रिफ्यूलिंग करनी पड़ी थी।

(च) मार्गनिर्देशन सहायता और रनवे लाइटिंग की स्थिति । मार्गनिर्देशन सहायता/रनवे लाइटिंग की स्थिति को अपग्रेड करने की तत्काल आवश्यकता है।

(छ) राहत उपस्करों के प्रकार. . राहत सामग्री उपस्करों में बेसिक फीड, वाटर, आश्रय, चिकित्सा अस्पतालों से लेकर जनरेटर, बोरिंग उपस्कर, सामान्य उपस्कर और बिल्डिंग सामग्री आदि थे।

 

Visitors Today : 19
Total Visitors : 968360
Copyright © 2021 Indian Air Force, Government of India. All Rights Reserved.
phone linkedin facebook pinterest youtube rss twitter instagram facebook-blank rss-blank linkedin-blank pinterest youtube twitter instagram